पदार्थान्वयभाषाः - (शशः प्रत्यञ्चं क्षुरं जगार) हे आत्मन् या राजन् ! मुझ प्राण के प्रभाव से या मुझ राज्यमन्त्री के प्रभाव से शश-छोटा प्राणी भी आक्रमण करते हुए तीक्ष्ण नखवाले सिंह को निगलने में-परास्त करने में समर्थ हो जाता है या शश जैसा अल्प शरीरवाला मनुष्य भी शस्त्रधारी पर-सैनिक को निगलने में-परास्त करने में समर्थ हो जाता है (लोगेन-अद्रिम्-आरात्-वि-अभेदम्) मैं प्राण मांसल केवल मांसवाले अङ्ग से भी सम्मुख आये शस्त्रधारी शत्रु को विदीर्ण कर देता हूँ (ऋहते बृहन्तं-चित् रन्धयानि) अल्पशरीरवाले के लिये महान् महाकायावाले को भी वश में ला सकता हूँ (वत्सः शूशुवानः-वृषभं वयत्) अल्प अवस्थावाले मेरे प्रभाव से प्रवृद्ध हुआ साँडसदृश कायावाले को दूर भगा दे ॥९॥
भावार्थभाषाः - प्राण के प्रबल होने पर शश जैसा छोटा प्राणी भी तीक्ष्ण पञ्जोंवाले सिंह जैसे पशु को परास्त कर देता है। मांसवाले अङ्ग पर्वतसदृश कठोर प्रदेश को छिन्न-भिन्न कर देता है। लघु शरीर के लिए महा शरीरवाले को दबा देता है। प्राण के प्रभाव से छोटा बच्चा भी बड़े सींगवाले को भगा देता है तथा कुशल राज्यमन्त्री के प्रभाव से साधारण प्रजाजन साधन से शस्त्रधारी शत्रु को परास्त कर देता है। हीन कायावाले प्रजाजन के लिए साँडसदृश सींगवाले को दूर भगा देता है ॥९॥