पदार्थान्वयभाषाः - (जरितः) हे पापों के क्षीण करनेवाले आत्मन् ! या शत्रुओं के क्षीण करनेवाले राजन् ! (मे-इदं सु-आ चिकिद्धि) मेरे इस वचन को तू भली-भाँति जान (नद्यः-शापं प्रतीपं वहन्ति) मेरे प्रभाव से नाड़ियाँ मलिन भाग को और नदियाँ दूषित पदार्थ को विपरीत नीचे बहाती हैं या फेंकती हैं, किन्तु शरीर को या राष्ट्र को दूषित नहीं करतीं, ऐसा कथन प्राण या राज्यमन्त्री का है। (लोपाशः सिंहं प्रत्यञ्चम्-अत्साः) घास खानेवाला पशु मुझ राजमन्त्री की प्रेरणा से सिंह-सदृश बलवान् जन को पीछे धकेल देता है (क्रोष्टा वराहं कक्षात्-निरतक्त) केवल बोलनेवाला गीदड़ भी बलवान् बन शूकर को या गीदड़समान पुरुष भी शूकरसमान बलवान् पुरुष को स्थान से बाहर निकाल दे ॥४॥
भावार्थभाषाः - प्राण की शक्ति से शरीर की नाड़ियाँ दूषित रस को नीचे बहा देती हैं और प्राण की शक्ति से घास खानेवाला लघु पशु भी सिंह आदि जैसे पशु को पछाड़ देता है तथा राष्ट्रमन्त्री ऐसी व्यवस्था करे कि नदियाँ दूषित पदार्थों को नीचे बहा ले जावें और राष्ट्रमन्त्री शाक अन्न आदि से पुष्ट होने की ऐसी व्यवस्था करे कि उनके खानेवाला सिंह आदि जैसे बलवान् विरोधी जन को पछाड़ दे ॥४॥