पदार्थान्वयभाषाः - सृष्ट्युत्पत्ति दर्शाते हैं−(देवानां माने प्रथमाः-अतिष्ठन्) देवों के निर्माण समय प्रमुख देव प्रसिद्धि को प्राप्त हुए (कृन्तत्रात्) अन्तरिक्ष से (एषाम्-उपराः-उदायन्) इन मेघों के छेदन-भेदन से उन में उपरत हुए जल बाहर आये-बरसे, इस प्राकर (त्रयः-अनूपाः पृथिवीं तपन्ति) तीन अर्थात् मेघ वायु और सूर्य अनुकूल हुए ‘बरसने, शीत देने और उष्णता बखेरने द्वारा पृथिवी अर्थात् पृथिवीस्थित ओषधियों को पकाते हैं (द्वा बृबूकं पुरीषं वहतः) तथा दो वायु और सूर्य जल को प्राप्त कराते हैं अर्थात् सूर्य अपनी किरणों से जलों को भापरूप में ऊपर खींचता है और वायु उन भापरूप जलों को धारण करता है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - आरम्भ सृष्टि में देवों अर्थात् प्रमुख सूर्य आदि पदार्थों का निर्माण होता है। आकाश में से मेघ जल बरसाते हैं। पृथिवी के वनस्पति आदि पदार्थों को मेघ वायु और सूर्य उत्पन्न तथा पुष्ट करते हैं। सूर्य जलों को भापरूप में ऊपर खींचता है और वायु उन्हें धारण करता है, पुनः वृष्टिरूप में जल वर्षता है ॥२३॥