पदार्थान्वयभाषाः - (वृक्षे वृक्षे) वृक्षविकार धनुष् धनुष् में-प्रत्येक धनुष् में (गौः) गो सम्बन्धी-स्नायुवाली ज्या-धनुष् की डोरी (नियता) नियुक्त हुई (मीमयत्) शब्द करती है (ततः) पुनः (पुरुषादः-वयः-प्रपतान्) मनुष्यों को खानेवाले हिंसित करनेवाले बाण प्रबलरूप से गिरते हैं। यह एक प्रकार का अर्थ निरुक्त में दिये यास्काचार्य के अनुसार अधिभौतिक दृष्टि से है। आध्यात्मिक दृष्टि से−(वृक्षे वृक्षे) व्रश्चनशील छिन्न-भिन्न होनेवाले या नश्वर शरीरमात्र में (गौः) गमनशील सब को प्राप्त होनेवाला मृत्यु (नियता) नियुक्त हुआ (मीमयत्) घोषित करता है कि मैं मारूँगा (ततः) पुनः (पुरुषादः-वयः-प्रपतान्) मनुष्यों को हिंसित करनेवाले आघात रोग आदि बाणरूप प्रहार करते हैं (अथ-इदं विश्वं भुवनं भयाते) पुनः यह प्राणिमात्र भय करता है (इन्द्राय-ऋषये-सुन्वत्-च शिक्षत्) ऐश्वर्यवान् सर्वद्रष्टा परमात्मा के लिये उपासनारस को समर्पित करता है ॥२२॥
भावार्थभाषाः - प्रत्येक प्राणिशरीर नश्वर है, उसके लिये मृत्यु नियत है। नाना प्रकार के आघातों और रोगों से मृत्यु का ग्रास बन जाता है। यह देख उपासक अमृतरूप परमात्मा की उपासना करता है ॥२२॥