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जु॒षद्ध॒व्या मानु॑षस्यो॒र्ध्वस्त॑स्था॒वृभ्वा॑ य॒ज्ञे । मि॒न्वन्त्सद्म॑ पु॒र ए॑ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

juṣad dhavyā mānuṣasyordhvas tasthāv ṛbhvā yajñe | minvan sadma pura eti ||

पद पाठ

जु॒षत् । ह॒व्या । मानु॑षस्य । ऊ॒र्ध्वः । त॒स्थौ॒ । ऋभ्वा॑ । य॒ज्ञे । मि॒न्वन् । सद्म॑ । पु॒रः । ए॒ति॒ ॥ १०.२०.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:20» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋभ्वा) वह क्रान्तदर्शी अग्नि परमात्मा या मेधावी राजा (यज्ञे) अध्यात्म-यज्ञ में या राजसूययज्ञ में (मानुषस्य) उपासक जन के या प्रजाजन के (हव्या जुषत्) प्रार्थनावचनों को सेवन करता हुआ या उपहारवस्तु को पसन्द करता हुआ (ऊर्ध्वः तस्थौ) शिरोधार्य या मान्य होता है या उच्चासन पर विराजमान होता है। (सद्म मिन्वन्) हृदयसदन को प्राप्त होता हुआ या राजभवन को प्राप्त होता हुआ (पुरः-एति) सम्मुख या साक्षात् प्राप्त होता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा या राजा अध्यात्मयज्ञ या राजसूययज्ञ में प्रार्थनावचन या उपहारवस्तुओं को स्वीकार करता है, शिरोधार्य होता हुआ उपासकों के हृदय में परमात्मा और राजभवन में राजा विराजमान है ॥५॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋभ्वा) स क्रान्तदर्शी तथाऽग्रणायकः परमात्मा यद्वा मेधावी राजा “ऋभुः-मेधाविनाम” [निघ०३।१५] ऋभुशब्दादाकारादेशश्छान्दसः (यज्ञे) अध्यात्मयज्ञे राजसूययज्ञे वा (मानुषस्य) उपासक-जनस्य प्रजाजनस्य वा (हव्या जुषत्) प्रार्थनावचनानि सेवमानः, उपहारवस्तूनि प्रियमाणो वा (ऊर्ध्वः-तस्थौ) शिरोधार्यो भूतो भवति मान्यो भवति, उच्चासनाधिकारी भवति वा (सद्म मिन्वन्) हृदयसदनं प्राप्नुवन् “मिनोति गतिकर्मा” [निघ०२।१४] राजभवनं प्राप्नुवन् (पुरः-एति) सम्मुखं प्राप्नोति-साक्षाद् भवति ॥५॥