पदार्थान्वयभाषाः - (यत्-नियानम्) गौओं, प्रजाओं और इन्द्रियों का जो नियत नैत्यिक कार्य में गमन है (नि-अयनम्) तथा फिर नियत नैत्यिक निश्रयण-रहना (संज्ञानम्) संल्लाभ-दुग्धादि, उपहार वा भोग देना (यत् परायणम्) जो दूरगमन-स्वकार्य से निवृत्त होना है और (आवर्तनम्) पुनः प्रवृत्त होना (निवर्तनम्) कार्य से विराम करना, आदि क्रियाओं का (यः गोपाः-अपि तं हुवे) जो सब ओर से गोस्वामी, प्रजापति इन्द्रियस्वामी परमात्मा है, उसकी प्रार्थना करता हूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - गौओं, प्रजाओं, इन्द्रियों का नित्य स्वकार्य में प्रवेश होना-जाना-स्थिर होना और उनसे लाभ लेना; कार्य से पुनः निवृत्त होना फिर कार्य में लगना आदि क्रियाएँ सब रक्षक परमात्मा के अधीन हैं। उसकी हम स्तुति करें ॥४॥