वांछित मन्त्र चुनें
देवता: वायु: ऋषि: उलो वातायनः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

उ॒त वा॑त पि॒तासि॑ न उ॒त भ्रातो॒त न॒: सखा॑ । स नो॑ जी॒वात॑वे कृधि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta vāta pitāsi na uta bhrātota naḥ sakhā | sa no jīvātave kṛdhi ||

पद पाठ

उ॒त । वा॒त॒ । पि॒ता । अ॒सि॒ । नः॒ । उ॒त । भ्राता॑ । उ॒त । नः॒ । सखा॑ । सः । नः॒ । जी॒वात॑वे । कृ॒धि॒ ॥ १०.१८६.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:186» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:44» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वात) हे वायु ! (नः) तू हमारा (उत पिता-असि) पालक है (उत भ्राता) बन्धु की भाँति भरणकर्त्ता है (उत नः सखा) और हमारा सहायकारी सर्वदुःखविनाशक है (सः) वह तू (नः) हमें (जीवातवे) जीवन के लिए (कृधि) सम्पन्न कर ॥२॥
भावार्थभाषाः - वायु पालक है, रक्षक है, पोषण कर्ता है, जीवन का साथी है, जीवन के लिए समर्थ बनाता है, उसका उचित रीति से सेवन करना चाहिये ॥२॥
बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वात) हे वायो ! (नः) अस्माकम् (उत पिता-असि) अपि पालकोऽसि “पिता पालकः” [यजु० ३६।३ दयानन्दः] (उत भ्राता) अपि बन्धुवद् भरणकर्त्ता “भ्राता बन्धुवद्वर्त्तमानः” [ऋ० १।१६४।१ दयानन्दः] (उत-नः सखा) अपि चास्माकं सहायकारी “सुखा सर्वदुःखविनाशनेन सहायकारी” [ऋ० १।३१।१] (सः-नः-जीवातवे कृधि) स त्वमस्मान् जीवितुं समर्थान् कुरु “जीवातवे छान्दसं दीर्घत्वम्” ॥२॥