पि॒तु॒भृतो॒ न तन्तु॒मित्सु॒दान॑व॒: प्रति॑ दध्मो॒ यजा॑मसि ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
pitubhṛto na tantum it sudānavaḥ prati dadhmo yajāmasi ||
पद पाठ
पि॒तु॒ऽभृतः॑ । न । तन्तु॑म् । इत् । सु॒ऽदान॑वः । प्रति॑ । द॒ध्मः॒ । यजा॑मसि ॥ १०.१७२.३
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:172» मन्त्र:3
| अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:30» मन्त्र:3
| मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पितुभृतः) अन्नधारक-अन्नवाले (सुदानवः-न) उत्तम दानियों के समान (तन्तुम्-इत्) हम जीवनतन्तु-जीवनक्रम को अवश्य (प्रतिदध्मः) पुनः-पुनः धारण करते हैं-सन्तानक्रम चलाते हैं (यजामसि) इसलिए अपने समस्त कार्यों को संगत करते हैं, युक्त करते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ लोग अन्न कमानेवाले हों, ऐसे ही वे-अच्छे दानी भी हों, जैसे दानी निरन्तर कमाते जाते हैं और दान देते हैं, ऐसे सन्तानों का क्रम भी चलाते रहना चाहिये, अपने समस्त कार्यों को ठीक जोड़ना चाहिये, संगति से करना चाहिए ॥३॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (पितुभृतः सुदानवः-न) अन्नधारका-अन्नवन्तः “पितुः-अन्ननाम” [निघ० २।७] सुष्ठुदातार इव (तन्तुम्-इत् प्रतिदध्मः) वयं जीवनतन्तुं जीवनक्रममवश्यं पुनर्धारयामः अतः (यजामसि) उषोवेलायां स्वकीयसमस्तकार्याणि सङ्गमयामः ॥३॥