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याः सरू॑पा॒ विरू॑पा॒ एक॑रूपा॒ यासा॑म॒ग्निरिष्ट्या॒ नामा॑नि॒ वेद॑ । या अङ्गि॑रस॒स्तप॑से॒ह च॒क्रुस्ताभ्य॑: पर्जन्य॒ महि॒ शर्म॑ यच्छ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yāḥ sarūpā virūpā ekarūpā yāsām agnir iṣṭyā nāmāni veda | yā aṅgirasas tapaseha cakrus tābhyaḥ parjanya mahi śarma yaccha ||

पद पाठ

याः । सऽरू॑पाः । विऽरू॑पाः । एक॑ऽरूपाः । यासा॑म् । अ॒ग्निः । इष्ट्या॑ । नामा॑नि । वेद॑ । याः । अङ्गि॑रसः । तप॑सा । इ॒ह । च॒क्रुः । ताभ्यः॑ । प॒र्ज॒न्य॒ । महि॑ । शर्म॑ । य॒च्छ॒ ॥ १०.१६९.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:169» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (सरूपाः) समानरूपवाली (विरूपाः) भिन्न-भिन्न रूपवाली (एकरूपाः) जाति से एकरूप गौवें होती हैं (यासां नामानि) जिनके नाम (इष्ट्या) याग द्वारा-यज्ञ में उनके घृत होमने के द्वारा (अग्निः) अग्रणी ऋत्विक्-ब्रह्मा (वेद) गुणानुसार जानता है (याः-अङ्गिरसः) जिन गौवों को ऋत्विक् जन (तपसा) तप से-अपने ज्ञानमय तप से (इह चक्रुः) इस मानवसमाज में प्रसिद्ध करते हैं-सम्पन्न करते हैं (ताभ्यः) उन गौवों के लिए (पर्जन्य) यजमान (शर्म यच्छ) स्वागत के साथ घर दे-पालन पोषण करे ॥२॥
भावार्थभाषाः - गौवें एक रंगवाली भिन्न-भिन्न रंगवाली होती हुई भी जाति से सब एक ही हैं, वे सब अपने-अपने गुणों से प्रसिद्ध की जाती हैं, उनके घृत के होम से और उपयोग से ऋत्विक् जन और ब्रह्मा उनके नाम रखते हैं और उन्हें अलंकृत करते हैं, यजमान उनको अपने घर में स्वागत के साथ रखें और उपयोगी आहार प्रदान कर सुखी करें ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (याः-सरूपाः-विरूपाः-एकरूपाः) याः खलु गावः समानरूपाः, विभिन्नरूपाः सत्योऽप्येकरूपाः सन्ति जात्या (यासां नामानि इष्ट्या-अग्निः-वेद) यासां नामानि गुणानुसारीणि यागेन-होमे तद्घृतोपयोगेन ज्ञाता ब्रह्मा विद्वान् जानाति, (याः-अङ्गिरसः-तपसा-इह चक्रुः) ऋत्विग्जनास्तपसा सम्पन्नाः कुर्वन्ति (ताभ्यः पर्जन्य शर्म यच्छ) ताभ्यो हे यजमान ! गृहं प्रदेहि “शर्म गृहनाम” [निघ० ३।४] ॥२॥