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स्व॒स्ति॒दा वि॒शस्पति॑र्वृत्र॒हा वि॑मृ॒धो व॒शी । वृषेन्द्र॑: पु॒र ए॑तु नः सोम॒पा अ॑भयंक॒रः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svastidā viśas patir vṛtrahā vimṛdho vaśī | vṛṣendraḥ pura etu naḥ somapā abhayaṁkaraḥ ||

पद पाठ

स्व॒स्ति॒ऽदाः । वि॒शः । पतिः॑ । वृ॒त्र॒ऽहा । वि॒ऽमृ॒धः । व॒शी । वृषा॑ । इन्द्रः॑ । पु॒रः । ए॒तु॒ । नः॒ । सो॒म॒ऽपाः । अ॒भ॒य॒म्ऽक॒रः ॥ १०.१५२.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:152» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वस्तिदा) कल्याण का दाता (विशस्-पतिः) प्रजा का पालक (वृत्रहा) आक्रमणकारी पापी, विरोधी का हन्ता-मारनेवाला-नष्ट करनेवाला (विमृधः) विशिष्ट संग्रामवाली सेनाओं का वशकर्ता (वृषा) सुखवर्षक (इन्द्रः) परमात्मा या राजा (सोमपाः) उत्पन्न-पदार्थों का रक्षक परमात्मा या सोमरस का पानकर्ता राजा (अभयङ्करः) अभयदाता (नः पुरः) हमारे आगे (एतु) प्राप्त हो या चले ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा कल्याण का देनेवाला, उपासक प्रजा का रक्षक, उपासक के विरोधियों को नष्ट करनेवाला, संघर्ष करनेवाली प्रवृत्तियों का वशकर्ता, सुखवर्षक, उत्पन्न पदार्थों का रक्षक, अभयदाता रूप में साक्षात् होता है एवं राजा कल्याणदाता, प्रजा का रक्षक, आक्रमणकारी शत्रुसेनाओं को वश में करनेवाला, सोमरस का पान करनेवाला, संकट के अवसर पर आगे बढ़नेवाला हो ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वस्तिदाः) कल्याणदाता (विशस्-पतिः) प्रजायाः पालकः (वृत्रहा) आवरणकर्त्तुः पापिनो विरोधिनो हन्ता (विमृधः-वशी) विशिष्टः संग्रामो यासां ताः विरोधिनीः सेनाः-तस्याः-वशकर्त्ता “मृधः संग्रामनाम” [निघ० २।१७] (वृषा) सुखवर्षकः (इन्द्रः) परमात्मा राजा वा (सोमपाः) उत्पन्न-पदार्थानां रक्षकः “सोमपाः सर्वपदार्थरक्षकः” [ऋ० १।४।२ दयानन्दः] सोमरसस्य पानकर्त्ता वा (अभयङ्करः) अभयदाता (नः पुरः-एतु) अस्माकं सम्मुखं प्राप्नोतु-अग्रे गच्छतु वा ॥२॥