पदार्थान्वयभाषाः - (श्रद्धे) हे सद्-आस्था (मे) मेरे (इदम्-उदितम्) मेरे इस घोषित वचन को (ददतः) दान देते हुए मनुष्य का (प्रियं कृधि) कल्याण कर (श्रद्धे) हे सद्-आस्था ! (दिदासतः) देने की इच्छा रखनेवाले मनुष्य का कल्याण कर (भोजेषु) दान के भोक्ता जनों में तथा (यज्वसु) दक्षिणा ग्रहण करनेवाले ऋत्विजों में कल्याण कर ॥२॥
भावार्थभाषाः - श्रद्धा ऐश्वर्य के ऊँचे स्थान पर बैठती है, इसलिए श्रद्धायुक्त मेरे ये घोषित वचन सफल हों, दान देते हुए का और दान देने की इच्छा रखते हुए का कल्याण हो और दान का भोग करनेवालों का भी कल्याण हो और यज्ञ की दक्षिणा लेते ऋत्विजों का भी कल्याण हो, इस प्रकार श्रद्धा से देनेवाले श्रद्धा से यज्ञ करानेवाले, श्रद्धा से खानेवाले और श्रद्धा से दक्षिणा लेनेवाले ये सब श्रद्धायुक्त हों ॥२॥