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त्वामु॑ जा॒तवे॑दसं वि॒श्ववा॑रं गृणे धि॒या । अग्ने॑ दे॒वाँ आ व॑ह नः प्रि॒यव्र॑तान्मृळी॒काय॑ प्रि॒यव्र॑तान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām u jātavedasaṁ viśvavāraṁ gṛṇe dhiyā | agne devām̐ ā vaha naḥ priyavratān mṛḻīkāya priyavratān ||

पद पाठ

त्वाम् । ऊँ॒ इति॑ । जा॒तऽवे॑दसम् । वि॒श्वऽवा॑रम् । गृ॒णे॒ । धि॒या । अग्ने॑ । दे॒वान् । आ । व॒ह॒ । नः॒ । प्रि॒यऽव्र॑तान् । मृ॒ळी॒काय॑ । प्रि॒यऽव्र॑तान् ॥ १०.१५०.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:150» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदसम्) उत्पन्न मात्र के जाननेवाले-उत्पन्न होते ही जानने योग्य (विश्ववारम्) सबके वरनेवाले सब अन्धकार के निवारण करनेवाले (त्वाम्) तुझ परमात्मा को या अग्नि को (धिया गृणे) स्तुतिवाणी से स्तुति में लाता हूँ या कर्म द्वारा प्रशंसित करता हूँ (अग्ने) हे अग्रणायक ! (नः) हमारे (प्रियव्रतान्) प्रिय कर्म करनेवाले (देवान्) विद्वानों को या वायु आदि को (आ वह) प्राप्त करा (मृळीकाय) सुख के लिए (प्रियव्रतान्) प्रियकर्म करनेवाले देवों को प्राप्त करा ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उत्पन्नमात्र को जाननेवाला, सबका रक्षक, अच्छे कर्म करनेवालों को प्रेरित करनेवाला है, उसकी स्तुति करनी चाहिए एवं अग्नि उत्पन्न होते ही जानने योग्य अन्धकार को मिटानेवाला, अच्छे कर्म करनेवालों का समागम करानेवाला हमारे सुख के लिए उपयोग में लेना चाहिए ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदसं विश्ववारं त्वां धिया गृणे) जातमात्रस्य वेदितारं सर्वस्य वरयितारं त्वां परमात्मानं यद्वा जातमेव वेद्यमानं सर्वस्यान्धकारस्य निवारयितारं त्वामग्निं स्तुतिवाचा स्तौमि यद्वा कर्मणा प्रशंसामि-वर्णयामि (अग्ने) हे अग्रणायक ! (नः प्रियव्रतान् देवान्-आ वह) अस्मभ्यं प्रियकर्मणे विदुषो यद्वा वायुप्रभृतीन् प्रापय (मृळीकाय प्रियव्रतान्) सुखाय प्रियकर्मणः-देवान् प्रापय ॥३॥