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प्र नो॑ यच्छत्वर्य॒मा प्र भग॒: प्र बृह॒स्पति॑: । प्र दे॒वाः प्रोत सू॒नृता॑ रा॒यो दे॒वी द॑दातु नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra no yacchatv aryamā pra bhagaḥ pra bṛhaspatiḥ | pra devāḥ prota sūnṛtā rāyo devī dadātu naḥ ||

पद पाठ

प्र । नः॒ । य॒च्छ॒तु॒ । अ॒र्य॒मा । प्र । भगः॑ । प्र । बृह॒स्पतिः॑ । प्र । दे॒वाः । प्र । उ॒त । सू॒नृता॑ । रा॒यः । दे॒वी । द॒दा॒तु॒ । नः॒ ॥ १०.१४१.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:141» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:29» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्यमा नः प्र यच्छतु) न्यायाधीश हमारे लिए न्याय दे (भगः-प्र) ऐश्वर्यवान् ऐश्वर्य दे (बृहस्पतिः-प्र) वेदवाणी का स्वामी वेदाचार्य वेदज्ञान प्रदान करे (देवाः-प्र) विद्वान् जन हमारे लिए शरण प्रदान करें (उत सूनृता देवी) तथा शोभन अन्नवाली अन्नव्यवस्थापिका समिति (नः-रायः-प्र ददातु) हमारे लिए धन अन्नादि को प्रदान करे ॥२॥
भावार्थभाषाः - राष्ट्र में रहनेवाले प्रजाजनों के लिए न्यायाधीश न्याय दे और धन-सम्पत्तिशाली जन केवल अपने लिए ही नहीं, अपितु प्रजाजनों के लिए उस सम्पत्ति का यथोचित भाग दें, विद्वान् जन प्रजा को ज्ञान शरण प्रदान करें, अन्नादि की व्यवस्था करनेवाली समिति या राजनीति प्रजा के लिए अन्न आदि देती रहे ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्यमा नः प्र यच्छतु) न्यायाधीशः “अर्यमा न्यायाधीशः” [ऋ० १।२६।४ दयानन्दः] अस्मभ्यं न्यायं प्रददातु (भगः-प्र) भगमैश्वर्यं यस्य स भगः, ‘अकारो मत्वर्थीयः’ ऐश्वर्यवान्, ऐश्वर्यभागं प्रददातु (बृहस्पतिः प्र) बृहत्या वेदवाचः स्वामी वेदाचार्यः-वेदज्ञानं प्रददातु (देवाः-प्र) विद्वांसोऽस्मभ्यं शरणं प्रददतु (उत सूनृता देवी) अपि-च शोभनमन्नं यस्यां सा शोभनान्नवती साऽन्नव्यवस्थापिकासमितिः “सूनृतान्ननाम” [निघ० २।७] सूनृता “अन्नादिसमूहकरी राजनीति...” [ऋ० १।५१।२ दयानन्दः] (नः-रायः प्र ददातु) अस्मभ्यं धनान्नादीन् प्रददातु ॥२॥