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के॒श्य१॒॑ग्निं के॒शी वि॒षं के॒शी बि॑भर्ति॒ रोद॑सी । के॒शी विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे के॒शीदं ज्योति॑रुच्यते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

keśy agniṁ keśī viṣaṁ keśī bibharti rodasī | keśī viśvaṁ svar dṛśe keśīdaṁ jyotir ucyate ||

पद पाठ

के॒शी । अ॒ग्निम् । के॒शी । वि॒षम् । के॒शी । बि॒भ॒र्ति॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । के॒शी । विश्व॑म् । स्वः॑ । दृ॒शे । के॒शी । इ॒दम् । ज्योतिः॑ । उ॒च्य॒ते॒ ॥ १०.१३६.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:136» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में सूर्य और ग्रहों को वातसूत्र धारण करते हैं, ग्रहों को प्रकाश सूर्य देता है, जल को ऊपर खींचता है, ओषधियों में रस देता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (केशी) रश्मिवाला सूर्य (अग्निं बिभर्ति) अग्नि को धारण करता है उसके अन्दर होने से और उसके द्वारा अन्य गोले के प्रकाश्यमान होने से (केशी विषम्) सूर्य जल को धारण करता है गगन में (केशी रोदसी) सूर्य द्युलोक पृथिविलोक को धारण करता है (केशी विश्वम्) सूर्य सारे विश्व को धारण करता है (केशी स्वर्दृशे) सूर्य सब जगत् को दिखाने के लिए उदय होता है (केशी ज्योतिः-इदम्-उच्यते) सूर्य प्रत्यक्ष ज्योति कहा जाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - सूर्य रश्मिमान् है, अग्नि को धारण करता है, अन्य पिण्डों को प्रकाशित करता है, आकाश में जल को धारण करता है, द्युलोक पृथिवीलोक को धारण करता है, सब जगत् को दिखाने के लिए यह एक महान् ज्योति है ॥१॥
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते सूर्यस्य ग्रहाणां धारकाणि वातसूत्राणि सन्ति, सूर्यश्च ग्रहाणां प्रकाशको जलं चोपर्याकर्षति पृथिवीस्थासु खल्वोषधीषु रसं दधातीत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (केशी) केशा रश्मयः “रश्मयः-केशाः [तै० सं० ७।५।२५।१] “केशा रश्मयस्तद्वान्” [निरु० १२।२६] रश्मिमान् सूर्यः (अग्निं बिभर्ति) अग्निं धारयति तदन्तरे विद्यमानत्वात्-तद्द्वारा प्रकाश्यमानत्वाच्च (केशी विषम्) स एव केशी सूर्यो जलं धारयति गगने “विषमुदकनाम” [निघ० १।१२] (केशी रोदसी) सूर्यः खलु द्यावापृथिव्यौ “रोदसी द्यावापृथिवीनाम” [ निघ० ३।३०] बिभर्त्ति (केशी विश्वम्) केशी विश्वं सर्वमिदं धारयति (केशी स्वर्दृशे) सर्वं जगद्दर्शनाय (केशी ज्योतिः-इदम्-उच्यते) केशी इदं सूर्यज्योतिः-कथ्यते ॥१॥