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यं कु॑मार॒ प्राव॑र्तयो॒ रथं॒ विप्रे॑भ्य॒स्परि॑ । तं सामानु॒ प्राव॑र्तत॒ समि॒तो ना॒व्याहि॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaṁ kumāra prāvartayo rathaṁ viprebhyas pari | taṁ sāmānu prāvartata sam ito nāvy āhitam ||

पद पाठ

यम् । कु॒मा॒र॒ । प्र । अव॑र्तयः । रथ॑म् । विप्रे॑भ्यः । परि॑ । तम् । साम॑ । अनु॑ । प्र । अ॒व॒र्त॒त॒ । सम् । इ॒तः । ना॒वि । आऽहि॑तम् ॥ १०.१३५.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:135» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कुमार) हे न मरणशील जीवात्मन् ! (यं-रथम्) जिस शरीर को (विप्रेभ्यः परि प्र अवर्तयः) विद्वानों-मेधावी लोगों से ज्ञान प्राप्त करके चलाता है (तं साम-अनु) उस देहरथ को शिक्षित जन-अध्यात्म सुख जिससे हो (नावि-समाहितम्) नौका में रखे रथ की भाँति शरीररथ को चलाता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जीवात्मा विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करके अध्यात्मिक सुख मिले, इस ढंग से नौका में रखे रथ के समान नदी पार करने को जैसे होता है, ऐसे संसारसागर को पार करने के लिए देह को अध्यात्ममार्ग में चलाता है ॥४॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कुमार) हे अमरणशील जीवात्मन् ! (यं रथम्) यं शरीररथं त्वं (विप्रेभ्यः पर प्र अवर्तयः) मेधाविभ्यो ज्ञानं प्राप्य प्रवर्तयसि (तं साम-अनु नावि समाहितं प्र अवर्तत) तं देहरथं शिक्षितौ जनः साम-अध्यात्मसुखं यथा स्यात् नौकायां धृतं शरीररथं तथा प्रवर्तयति ‘अन्तर्गतणिजर्थः’ ॥४॥