पदार्थान्वयभाषाः - (विचेतसा) हे विशिष्ट चेतानेवाले ज्ञानप्रदान से अध्यापक उपदेशक या प्राण अपान जीवनरसप्रदान से (युवोः-हि) तुम्हारे ही (माता-अदितिः) निर्माण करनेवाली ज्ञानशक्ति, वेदविद्याश्रुति या हृदयस्थ प्राणशक्ति अखण्डनीय है (द्यौः-न भूमिः) द्युलोक या पृथिवीलोक के समान जल से और अन्नरस से शोधन करनेवाली होती है (सूरः) सूर्य (रश्मिभिः) किरणों द्वारा (निनिक्त) जगत् के दोष को शोधन करता है, (प्रिया-अव दिदिष्टन) प्रिय सुखों को देता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - ज्ञान द्वारा विशेषरूप से चेतानेवाले अध्यापक और उपदेशक होते हैं, उन्हें वेदविद्या या श्रुति योग्य बनाती है, वे द्युलोक और पृथिवीलोक की भाँति ज्ञान और आनन्दरस का सञ्चार करते हैं और मनुष्य के दोषों को शोधते हैं, सूर्य जैसे अपनी रश्मियों से जगत् को शोधता है एवं विशेष चेतानेवाले प्राण और अपान जीवनरस प्रदान करते हैं, हृदयस्थ प्राणशक्ति उनका निर्माण करती है, वह दोनों द्युलोक और पृथिवीलोक की भाँति जीवन और रसप्रदान करते हैं और शरीर का शोधन करते हैं ॥६॥