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अ॒साव॒न्यो अ॑सुर सूयत॒ द्यौस्त्वं विश्वे॑षां वरुणासि॒ राजा॑ । मू॒र्धा रथ॑स्य चाक॒न्नैताव॒तैन॑सान्तक॒ध्रुक् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asāv anyo asura sūyata dyaus tvaṁ viśveṣāṁ varuṇāsi rājā | mūrdhā rathasya cākan naitāvatainasāntakadhruk ||

पद पाठ

अ॒सौ । अ॒न्यः । अ॒सु॒र॒ । सू॒य॒त॒ । द्यौः । त्वम् । विश्वे॑षाम् । व॒रु॒ण॒ । अ॒सि॒ । राजा॑ । मू॒र्धा । रथ॑स्य । चा॒क॒न् । न । ए॒ताव॑ता । एन॑सा । अ॒न्त॒क॒ऽध्रुक् ॥ १०.१३२.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:132» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (असौ) वह (अन्यः) अन्य मित्र अध्यापक या प्राण (असुरः) अज्ञान का फेंकनेवाला या दोष के फेंकनेवाला (द्यौः-सूयत) द्यौ के समान ज्ञानप्रकाशदाता या कान्तिदाता है (त्वं वरुण) हे वरुण ! उपदेशक या अपान ! (विश्वेषां राजा-असि) सब जनों में राजमान है (रथस्य मूर्धा) रमणीय जनसमूह का मूर्धास्थानीय है (अन्तकध्रुक्) तुम्हारे में प्रत्येक मृत्यु का विरोधी है (एतावता-एनसा) इतने पाप से या दोष से परिमाण में आने को (न चाकन्) नहीं चाहता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - अज्ञान को हटानेवाला अध्यापक या दोष को हटानेवाला प्राण द्युलोक के समान प्रकाशदाता या कान्तिदाता है और उपदेशक तथा अपान राजा के समान आश्रय देनेवाला है, इस प्रकार रमणीय जनसमूह का मूर्धारूप सत्कार करने योग्य प्रत्येक अध्यापक और उपदेशक प्रत्येक प्राण और अपान मृत्यु के विरोधी हैं ॥४॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (असौ-अन्यः-असुरः-द्यौः-सूयत) सोऽन्यो मित्रः-अध्यापकः-प्राणो वा, अज्ञानस्य प्रक्षेपकः-दोषस्य प्रक्षेपकः प्राणो वा द्यौरिवासि ज्ञानप्रकाशदाता कान्तिदाता वाऽसि (त्वं वरुण विश्वेषां राजा-असि) हे वरुण उपदेशक, अपान ! वा सर्वेषां जनानां राजमानोऽसि (रथस्य मूर्धा) रमणीयजनसमुदायस्य प्रत्येकं मित्रः-वरुणः, मूर्धा वाऽसि (अन्तकध्रुक्) युवयोः प्रत्येकम्-अन्तकस्य नाशकस्य द्रोग्धा दूरीकर्त्ताऽसि (एतावता-एनसा न चाकन्) इयत्तया परिमातुं शक्यया पापेन दोषेण वा न कामयसे ॥४॥