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रात्री॒ व्य॑ख्यदाय॒ती पु॑रु॒त्रा दे॒व्य१॒॑क्षभि॑: । विश्वा॒ अधि॒ श्रियो॑ऽधित ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rātrī vy akhyad āyatī purutrā devy akṣabhiḥ | viśvā adhi śriyo dhita ||

पद पाठ

रात्री॑ । वि । अ॒ख्य॒त् । आ॒ऽय॒ती । पु॒रु॒ऽत्रा । दे॒वी । अ॒क्षऽभिः॑ । विश्वाः॑ । अधि॑ । श्रियः॑ । अ॒धि॒त॒ ॥ १०.१२७.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:127» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में रात्रि का वर्णन है, वह सब शोभाओं का आधार है। आकाश की शोभा रात्रि में नक्षत्र दिखाई देने से, उषा की शोभा रात्रि के आश्रय फूलों का खिलना, रात्रि में मनुष्यों की स्वास्थ्यशोभा विश्राम पाने से होती है।

पदार्थान्वयभाषाः - (आयती रात्रिः-देवी) आती हुई रात्रि देवी (अक्षभिः) नेत्र जैसे नक्षत्रों के साथ (व्यख्यत्) अपने को विशेषरूप से दर्शाती है (विश्वाः श्रियः) सारी शोभाओं को (अधि-अधित) अपने में धारण करती है ॥१॥
भावार्थभाषाः - रात्रि जब आती है, तो आकाश के नक्षत्रों के द्वारा अपने को दर्शाती है, समस्त शोभाओं को अपने अन्दर धारण करती है अर्थात् समस्त शोभाओं को रात्रि पुष्ट करती है, आकाश की शोभा नक्षत्रों द्वारा रात्रि को ही दिखाई देती है, मनुष्यों की दिन में थकान की ग्लानि स्वस्थता के रूप में भासित होती है, वृक्षों के फूल भी रात्रि में ही विकसित होते हैं ॥१॥
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते रात्रेर्वर्णनमस्ति सा च सर्वशोभानामाधारभूता आकाशस्य शोभा रात्रौ दृश्यते उषसः शोभाऽपि रात्रेराश्रये भवति पुष्पाणि रात्रौ विकसन्ति मनुष्याणां स्वास्थ्यं रात्रौ प्रवर्धते विश्रामात्।

पदार्थान्वयभाषाः - (आयती रात्री देवी) आगच्छन्ती रात्रिर्देवी (अक्षभिः) अक्षिसदृशैर्नक्षत्रैः सह (वि अख्यत्) आत्मानं विशेषेण ख्यापयति (विश्वाः श्रियः) सर्वाः-श्रियः शोभाः (अधि-अधित) अधिदधाति-स्वाश्रये धारयति, विविधनक्षत्रैर्मण्डितस्य गगनस्य शोभा रात्रावेव दृश्यते इति प्रत्यक्षं हि मनुष्याणां दिने श्रान्तानां स्वास्थ्यशोभाऽपि रात्रावेव प्राप्यते, तरूणां पुष्पाणि खल्वपि विकसन्ति पुष्प्यन्ति वा ॥१॥