पदार्थान्वयभाषाः - (देवः-देवान् परिभूः) परमात्मदेव आदि विद्वानों को परिभव करता है-उन्हें उपदेश करता है या विजयशील राजा अन्य जयशील राज्याधिकारियों को शासित करता है (नः हव्यम्-ऋतेन वह) हम उपासकों के या प्रजाजनों के प्रार्थनावचन को अपने ज्ञान द्वारा अपनी शरण में ले लेता है (प्रथमः चिकित्वान्) प्रकृष्टतम चेतनावान् या सावधान है (धूमकेतुः भाऋजीकः) धूनने योग्य अज्ञानी पापियों को बाहिर फेंकनेवाला प्रसिद्ध ज्ञानज्योतिवाला सर्वत्र ज्ञानप्रकाशक (समिधा मन्द्रः) सम्यक् आराधन साधन सिद्धि द्वारा स्तुतियोग्य-उपासनीय है-शरण होने के योग्य है (नित्यः होता वाचा यजीयान्) सद स्तुतिवचन से स्वीकार करनेवाला अत्यन्त सङ्गमनीय है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा आरम्भ-सृष्टि में आदिविद्वानों पर कृपा से परिभूत होता है, उनकी प्रार्थना सुनता-स्वीकार करता है, अज्ञानों को दूर करता है, अपनी प्रसिद्ध दीप्ति होने से चेताता है और उन्हें श्रेष्ठ मार्ग पर चलाता है, नित्य अपनानेवाला है। राजा भी राज्यप्रधान पुरुषों को शासित करे, उनके प्रार्थनीय कथन को सुने, अपने ज्ञानप्रकाश से सावधान कर उनकी सत्याचरणशीलता से उनका शरण्य बने ॥२॥