घृ॒तेना॒ग्निः सम॑ज्यते॒ मधु॑प्रतीक॒ आहु॑तः । रोच॑मानो वि॒भाव॑सुः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ghṛtenāgniḥ sam ajyate madhupratīka āhutaḥ | rocamāno vibhāvasuḥ ||
पद पाठ
घृ॒तेन॑ । अ॒ग्निः । सम् । अ॒ज्य॒ते॒ । मधु॑ऽप्रतीकः । आऽहु॑तः । रोच॑मानः । वि॒भाऽव॑सुः ॥ १०.११८.४
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:118» मन्त्र:4
| अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:24» मन्त्र:4
| मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:4
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विभावसुः) विशिष्ट दीप्ति से बसानेवाला (रोचमानः) प्रकाशमान (अग्निः) अग्रणेता परमात्मा या अग्नि, (घृतेन) देवकर्म-मुमुक्षुचर्य से या घृत से (सम् अज्यते) साक्षात् होता है या जलता है-प्रज्ज्वलित होता है (आहुतः) आमन्त्रित हुआ या होम में प्रदीप्त हुआ (मधुप्रतीकः) मधु सुखप्रतीति का निमित्त या-मधुगन्धप्रतीति करानेवाला होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा विशेष दीप्ति से बसानेवाला प्रकाशमान है। वह मुमुक्षुचर्या से साक्षात् होता है, वह मधुसुख की प्रतीति का निमित्त है एवं अग्नि विशिष्ट ज्योति से बसानेवाला प्रकाशमान घृत की आहुति से प्रज्ज्वलित होता है और मधुमय गन्ध की प्रतीति-कराता है, उससे प्रतिदिन होम करना चाहिये ॥४॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (विभावसुः-रोचमानः) विशिष्टदीप्त्या वासयिता प्रकाशमानः (अग्निः-घृतेन सम् अज्यते) अग्रणेता परमात्मा देवकर्मणा मुमुक्षुचर्येण साक्षाद् भवति यद्वा यज्ञाग्निः घृतेन ज्वलितो भवति (आहुतः-मधुप्रतीकः) आमन्त्रितः सन् मधुसुखप्रतीतिनिमित्तः यद्वा समन्तात् होमे हुतः सन् मधुगन्धप्रत्यायको भवति ॥४॥