स आहु॑तो॒ वि रो॑चते॒ऽग्निरी॒ळेन्यो॑ गि॒रा । स्रु॒चा प्रती॑कमज्यते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
sa āhuto vi rocate gnir īḻenyo girā | srucā pratīkam ajyate ||
पद पाठ
सः । आऽहु॑तः । वि । रो॒च॒ते॒ । अ॒ग्निः । ई॒ळेन्यः॑ । गि॒रा । स्रु॒चा । प्रती॑कम् । अ॒ज्य॒ते॒ ॥ १०.११८.३
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:118» मन्त्र:3
| अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:24» मन्त्र:3
| मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:3
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सः-अग्निः) वह परमात्मा या अग्नि (ईळेन्यः) स्तुति करने योग्य या उपयोग में लाने योग्य (गिरा-आहुतः) स्तुति द्वारा आमन्त्रित या मन्त्रवाणी द्वारा प्रज्ज्वलित किया (वि रोचते) विशेषरूप से साक्षात् होता है या प्रकाशित होता है (स्रुचा) स्तुति से या मन्त्रवाणी से (प्रतीकम्) प्रत्यक्ष या सामने (अज्यते) प्राप्त होता है या प्रकट होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा स्तुति करने योग्य है। वह स्तुति के द्वारा आमन्त्रित किया हुआ साक्षात् होता है और आत्मा में प्राप्त होता है एवं अग्नि मन्त्रवाणी से यज्ञकुण्ड में आधान को प्राप्त हुआ प्रकाशित होता है और घृतभरी स्रुवा से प्रदीप्त होता है ॥३॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (सः-ईळेन्यः-गिरा-आहुतः-अग्निः) स स्तोतव्यः परमात्माऽध्येषितव्यो-ऽग्निर्वा स्तुत्या आमन्त्रितः (वि रोचते) प्रकाशितो भवति वा, मन्त्रवाचा स्तुतोऽग्निर्वा (स्रुचा प्रतीकम्-अज्यते) स्तुतिवाचा मन्त्रवाचा वा प्रत्यक्षं प्राप्नोति प्रदीपयति वा ॥३॥