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दू॒रमि॑त पणयो॒ वरी॑य॒ उद्गावो॑ यन्तु मिन॒तीॠ॒तेन॑ । बृह॒स्पति॒र्या अवि॑न्द॒न्निगू॑ळ्हा॒: सोमो॒ ग्रावा॑ण॒ ऋष॑यश्च॒ विप्रा॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dūram ita paṇayo varīya ud gāvo yantu minatīr ṛtena | bṛhaspatir yā avindan nigūḻhāḥ somo grāvāṇa ṛṣayaś ca viprāḥ ||

पद पाठ

दू॒रम् । इ॒त॒ । प॒ण॒यः॒ । वरी॑यः । उत् । गावः॑ । य॒न्तु॒ । मि॒न॒तीः । ऋ॒तेन॑ । बृह॒स्पतिः॑ । याः । अवि॑न्दत् । निऽगू॑ळ्हाः । सोमः॑ । ग्रावा॑नः । ऋष॑यः । च॒ । विप्राः॑ ॥ १०.१०८.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:108» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पणयः) हे वणिजों के समान जलों के रक्षक मेघों ! (दूरं-वरीयः) तुम दूर-अतिदूर (इत) चले जावो (ऋतेन) सत्य स्थिर नियम के द्वारा (गावः) गमनशील जलधाराएँ (मिनतीः) सदा बन्धन में नहीं रह सकतीं, किन्तु उस रोध या बन्धन को छिन्न-भिन्न करती हुईं (उत् यन्तु) ऊपर आ जावें-बाहर निकल जावें (याः-निगूळ्हाः) जिन अन्दर छिपी हुई जलधाराओं को (बृहस्पतिः) आकाशविद्यावेत्ता (सोमः) ओषधिविद्याज्ञाता (ग्रावाणः) मेघविद्यावेत्ता जन (ऋषयः) तत्त्वदर्शक (च) और (विप्राः) मेधावी विद्वान् (अविन्दत्) प्राप्त करते हैं ॥११॥आध्यात्मिकयोजना−हे विषय ग्रहण करनेवाली प्रवृत्तियों के द्वारा व्यवहार करनेवाले इन्द्रिय प्राणों ! तुम दूर अतिदूर चले जाओ, समय आ गया कि विषय ग्रहण करनेवाली प्रवृत्तियाँ सत्य ज्ञान से परिपूरित हुई उद्गत हो जायेंगी-ऊँची हो जावेंगी। निगूढ़ की हुई वाणियों-स्तुतिवाणियों को वेदवेत्ता, शान्त, वेदवक्ता, तत्त्वदर्शक, मेधावी विद्वान् प्राप्त करते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - मेघों के अन्दर रुके हुए जल सदा नहीं रह सकते, वे कभी न कभी वृष्टि के रूप में बाहर  निकल जाते हैं तथा आकाशविद्या जाननेवाला, ओषधियों का ज्ञान रखनेवाला, मेघों को समझनेवाला तत्त्वदर्शक और मेधावी विद्वान् अपने प्रयोगों के द्वारा जलों को मेघों से वृष्टिरूप में प्राप्त कर लेवें ॥११॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पणयः) हे पणयो गोरक्षका जलरक्षका वा ! (दूरं वरीयः) दूरं दूरतरं (इत) गच्छत (ऋतेन गावः-मिनतीः-उत् यन्तु) सत्येन स्थिरनियमेन न सदा बद्धाः स्थास्यन्ति, आपस्तदारोधनं हिंसन्त्यः-उद्गमिष्यन्ति-बहिरागमिष्यन्ति (याः-निगूळ्हाः) या-अन्तर्हिता गाः-अपः (बृहस्पतिः सोमः-ग्रावाणः-ऋषयः-विप्राः-च-अविन्दत्) आकाशविद्यावेत्ता, ओषधिविद्याज्ञाता, मेघविद्यावेत्तार-स्तत्त्वदर्शकाः-मेधाविनो विद्वांसो लभन्ते प्राप्नुवन्ति “एकवचनं छान्दसं व्यत्ययेन” ॥११॥ आध्यात्मिकयोजना−विषयग्रहीत्रीभिः प्रवृत्तिभिर्व्यवहारकर्त्तार इन्द्रियप्राणाः यूयं दूरं दूरतरं गच्छत, समय आगतः, यद्विषयग्रहीत्र्यः प्रवृत्तयः सत्यज्ञानेन पूरितो उद्गता भविष्यन्ति, याः खलु निगूढीकृता वाचः स्तुतयः सन्ति ता बृहस्पतिवेदवेत्ता, शान्तः, वेदवक्ता तत्त्वदर्शका मेधाविनश्च प्राप्नुवन्ति प्राप्स्यन्ति ॥११॥