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प॒रि॒वृ॒क्तेव॑ पति॒विद्य॑मान॒ट् पीप्या॑ना॒ कूच॑क्रेणेव सि॒ञ्चन् । ए॒षै॒ष्या॑ चिद्र॒थ्या॑ जयेम सुम॒ङ्गलं॒ सिन॑वदस्तु सा॒तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

parivṛkteva patividyam ānaṭ pīpyānā kūcakreṇeva siñcan | eṣaiṣyā cid rathyā jayema sumaṅgalaṁ sinavad astu sātam ||

पद पाठ

प॒रि॒वृ॒क्ताऽइ॑व । प॒ति॒ऽविद्य॑म् । आ॒न॒ट् । पीप्या॑ना । कूच॑क्रेणऽइव । सि॒ञ्चन् । ए॒ष॒ऽए॒ष्या॑ । चि॒त् । र॒थ्या॑ । ज॒ये॒म॒ । सु॒ऽम॒ङ्गल॑म् । सिन॑ऽवत् । अ॒स्तु॒ । सा॒तम् ॥ १०.१०२.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:102» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषैष्या) गतिक्रमों के प्रेरण में साधु-कुशल (रथ्या) वृषभ रथ की प्रेरिका विद्युत्तरङ्गमाला (परिवृक्ता-इव) पतिहीन स्त्री की भाँति (पतिविद्यम्) पति के प्राप्तकाल-विवाह अवसर पर (आनट् पीप्याना) पति को प्राप्त होती है, तो पुष्ट होती चली जाती है-ऐसे ही (कूचक्रेण-इव सिञ्चन्) रहट से जैसे सींचता हुआ, ऐसे ही शस्त्रों को शत्रु पर फेंकता हुआ यन्त्रचक्र (सिनवत्) अन्न भोगवाले (सुमङ्गलम्) सुष्ठु कल्याणकारी (सातम्) भाग को (जयेम) प्राप्त करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - वृषभ आकृतिवाले यान में गतिक्रमों को आगे-आगे प्रेरित करनेवाली विद्युत्तरङ्ग-माला होती है, वह निरन्तर बढ़ती चली जाती है, जैसे विवाहकाल के अनन्तर स्त्री बढ़ती चली जाती है तथा जैसे रहट से पानी को खेतों में सींचा जाता है, ऐसे वृषभ आकृति यान यन्त्र में शत्रु के क्षेत्र में शस्त्र गिराये जाएँ-गिराये जाते हैं, अन्नादि भोग उत्तम-उत्तम भाग शत्रु के जीते जाते हैं या जीत लिये जावें ॥११॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषैष्या रथ्या) एषाणां गतिक्रमाणां एषणे-प्रेरणे साध्वी रथस्य प्रेरिका विद्युत्तरङ्गमाला (परिवृक्ताऽइव पतिविद्यम्-आनट् पीप्याना) पतिहीना स्त्रीव पतिप्राप्तकालं प्राप्नोति तदैव वर्धमाना भवति (कूचक्रेणेव सिञ्चन्) कूपचक्रेण “पकारलोपश्छान्दसः” जलसेचकयन्त्रेण सिञ्चन्-इव शस्त्राणि सिञ्चन् मन्त्रचक्रम् (सिनवत् सुमङ्गलं सातं जयेम) अन्नभोगवन्तं “सितमन्ननाम” [निघ० २।७] सुष्ठु कल्याणकारिणं भागं जयं प्राप्नुयाम ॥११॥