सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वि त॑न्वते॒ पृथ॑क् । धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
sīrā yuñjanti kavayo yugā vi tanvate pṛthak | dhīrā deveṣu sumnayā ||
पद पाठ
सीरा॑ । यु॒ञ्ज॒न्ति॒ । क॒वयः॑ । यु॒गा । वि । त॒न्व॒ते॒ । पृथ॑क् । धीराः॑ । दे॒वेषु॑ । सु॒म्न॒ऽया ॥ १०.१०१.४
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:101» मन्त्र:4
| अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:18» मन्त्र:4
| मण्डल:10» अनुवाक:9» मन्त्र:4
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (कवयः) कृषि कलाकार-किसान (सीरा) हल आदियों को (युञ्जन्ति) बैलों में जोड़ते हैं (युगा) जोतों-चरम साधनों-चरम पट्टियों को पृथक् पृथक् (वि तन्वते) बैलों से वितानित करते है-बाँधते हैं (धीराः) बुद्धिमान् वैज्ञानिक लोग (सुम्नया) स्वेच्छा से (देवेषु) विद्युत्-मेघ वायुवों के मन को युक्त करते हैं, खेती अच्छी सम्पन्न हो, इसके उपायों का चिन्तन करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - खेती करने में कुशल किसान हलादियों को बैलों के साथ जोड़कर चर्मपट्टियों से बाँधकर खेती जोतें, वे बुद्धिमान् वर्षा के निमित्त वायु में मेघादि देवों के योग का चिन्तन खेती सम्पन्न होने के निमित्त करें, बोने और काटने में इनका ध्यान रखें ॥४॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (कवयः) कृषिवलाः-कृषकाः-(सीरा युञ्जन्ति) सीराणि हलादीनि योजयन्ति बलिवर्देषु (युगा पृथक् वि तन्वते) योक्त्राणि चर्मसाधनानि पृथक् पृथग्बलीवर्दिषु वितन्वन्ति-बध्नन्ति (धीराः सुम्नया-देवेषु) धीमन्तो वैज्ञानिका लोकेषु स्वेच्छया विद्युन्मेघमरुत्सु मनो युञ्जते यत् कृषिः सम्पन्ना स्यादिति चिन्तयन्ति तदुपायान् ॥४॥