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पृ॒ष्टो दि॒वि पृ॒ष्टो अ॒ग्निः पृ॑थि॒व्यां पृ॒ष्टो विश्वा॒ ओष॑धी॒रा वि॑वेश। वै॒श्वा॒न॒रः सह॑सा पृ॒ष्टो अ॒ग्निः स नो॒ दिवा॒ स रि॒षः पा॑तु॒ नक्त॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pṛṣṭo divi pṛṣṭo agniḥ pṛthivyām pṛṣṭo viśvā oṣadhīr ā viveśa | vaiśvānaraḥ sahasā pṛṣṭo agniḥ sa no divā sa riṣaḥ pātu naktam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒ष्टः। दि॒वि। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याम्। पृ॒ष्टः। विश्वाः॑। ओष॑धीः। आ। वि॒वे॒श॒। वै॒श्वा॒न॒रः। सह॑सा। पृ॒ष्टः। अ॒ग्निः। सः। नः॒। दिवा॑। सः। रि॒षः। पा॒तु॒। नक्त॑म् ॥ १.९८.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:98» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे दोनों कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अग्निः) ईश्वर वा भौतिक अग्नि (दिवि) दिव्यगुण सम्पन्न जगत् में (पृष्टः) विद्वानों के प्रति पूछा जाता वा जो (पृथिव्याम्) अन्तरिक्ष वा भूमि में (पृष्टः) पूछने योग्य है वा जो (पृष्टः) पूछने योग्य (वैश्वानरः) सब मनुष्यमात्र को सत्य व्यवहार में प्रवृत्त करानेहारा (अग्निः) ईश्वर और भौतिक अग्नि (विश्वा) समस्त (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियों में (आ, विवेश) प्रविष्ट हो रहा और (सहसा) बल आदि गुणों के साथ वर्त्तमान (पृष्टः) पूछने योग्य है वह (नः) (सः) हम लोगों को (दिवा) दिन में (रिषः) मारनेवाले से और (नक्तम्) रात्रि में मारनेवाले से (पातु) बचावे वा भौतिक अग्नि बचाता है ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के समीप जाकर ईश्वर वा बिजुली आदि अग्नि के गुणों को पूछकर ईश्वर की उपासना और अग्नि के गुणों से उपकारों का आश्रय करके हिंसा में न ठहरें ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

योऽग्निर्विद्धद्भिर्दिवि पृष्टो यः पृथिव्यां पृष्टो यः पृष्टो वैश्वानरोऽग्निर्विश्वा ओषधीराविवेश सहसा पृष्टः स नो दिवा रिषः स नक्तं च पातु पाति वा ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पृष्टः) विदुषः प्रति यः पृच्छ्यते (दिवि) दिव्यगुणसंपन्ने जगति (पृष्टः) (अग्निः) विज्ञानस्वरूप ईश्वरो विद्युदग्निर्वा (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (पृष्टः) प्रष्टव्यः (विश्वाः) अखिलाः (ओषधीः) सोमलताद्याः (आ) सर्वतः (विवेश) प्रविष्टोऽस्ति (वैश्वानरः) सर्वस्य नरसमूहस्य नेता (सहसा) बलादिगुणैः सह वर्त्तमानाः (पृष्टः) (अग्निः) (सः) (नः) अस्मान् (दिवा) विज्ञानान्धकारप्रकाशेन सह (सः) (रिषः) हिंसकात् (पातु) पाति वा (नक्तम्) रात्रौ ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैर्विदुषां समीपं गत्वेश्वरस्य विद्युदादेश्च गुणान् पृष्ट्वोपकारं चाश्रित्य हिंसायां च न स्थातव्यम् ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांजवळ जाऊन ईश्वर व विद्युत इत्यादी अग्नीच्या गुणांना जाणून ईश्वराची उपासना व अग्नीपासून उपयोग करून घ्यावा तसेच हिंसा करू नये. ॥ २ ॥