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त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वत॑: परि॒भूरसि॑। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ hi viśvatomukha viśvataḥ paribhūr asi | apa naḥ śośucad agham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। हि। वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒। वि॒श्वतः॑। प॒रि॒ऽभूः। असि॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:97» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विश्वतोमुख) सबमें व्याप्त होने और अन्तर्यामीपन से सबको शिक्षा देनेवाला जगदीश्वर ! जिस कारण (त्वं, हि) आप ही (विश्वतः) सब ओर से (परिभूः) सबके ऊपर विराजमान (असि) हैं, इससे (नः) हम लोगों के (अघम्) दुष्ट स्वभाव सङ्गरूप पाप को (अप, शोशुचत्) दूर कराइये ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - सत्य-सत्य प्रेमभाव से प्रार्थना को प्राप्त हुआ अन्तर्यामी जगदीश्वर मनुष्यों के आत्मा में जो सत्य-सत्य उपदेश से उन मनुष्यों को पाप से अलगकर शुभ गुण, कर्म और स्वभाव में प्रवृत्त करता है, इससे यह नित्य उपासना करने योग्य है ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे विश्वतोमुख जगदीश्वर यतस्त्वं हि खलु विश्वतः परिभूरसि तस्माद्भवान्नोऽस्माकमघमपशोशुचद् ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) जगदीश्वरः (हि) खलु (विश्वतोमुख) सर्वत्र व्यापकत्वादन्तर्यामितया सर्वोपदेष्टः (विश्वतः) सर्वतः (परिभूः) सर्वोपरि विराजमानः (असि) (अप०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सत्यप्रेमभावेन प्रार्थितोऽन्तर्यामीश्वर आत्मनि सत्योपदेशेन पापादेतान्पृथक्कृत्य शुभगुणकर्मस्वभावेषु प्रवर्त्तयति तस्मादयं नित्यमुपासनीयः ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - खऱ्या प्रेमभावाने प्रार्थित अंतर्यामी ईश्वर माणसांच्या आत्म्यात सत्य उपदेशाने त्यांना पापापासून परावृत्त करतो व शुभ गुण, कर्म, स्वभावात प्रवृत्त करतो. त्यासाठी तो नित्य उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ६ ॥