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प्र यत्ते॑ अग्ने सू॒रयो॒ जाये॑महि॒ प्र ते॑ व॒यम्। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra yat te agne sūrayo jāyemahi pra te vayam | apa naḥ śośucad agham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। यत्। ते॒। अ॒ग्ने॒। सू॒रयः॑। जाये॑महि। प्र। ते॒। व॒यम्। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:97» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसके कैसे के कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) आप उत्तर-प्रत्युत्तर से कहनेवाले ! (यत्) जिन (ते) आपके जैसे (सूरयः) पूरी विद्या पढ़े हुए विद्वान् सभासद् हैं, उन (ते) आपके वैसे ही (वयम्) हमलोग भी (प्र, जायेमहि) प्रजाजन हों और ऐसे तुम (नः) हम लोगों के (अघम्) विरोधरूप पाप को (प्र, अप, शोशुचत्) अच्छे प्रकार दूर कीजिये ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में जैसे धर्मिष्ठ सभा आदि के अधीश मनुष्य हों, वैसे ही प्रजाजनों को भी होना चाहिये ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तस्य कीदृशस्य कीदृशाश्चेत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे अग्ने यद्यस्य ते तव यादृशाः सूरयः सभासदः सन्ति तस्य ते तव तादृशा वयमपि प्रजायेमहीदृशस्त्वं नोऽस्माकमघं प्रापशोशुचत् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (यत्) यस्य (ते) तव (अग्ने) आप्तानूचानाध्यापक (सूरयः) पूर्णविद्यावन्तो विद्वांसः (जायेमहि) (प्र) (ते) तव (वयम्) (अप, नः०) इति पूर्ववत् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इह संसारे यादृशा धर्मिष्ठाः सभाद्यध्यक्षा मनुष्या भवेयुस्तादृशैरेव प्रजास्थैर्मनुष्यैर्भवितव्यम् ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात जसा धार्मिक सभाध्यक्ष असेल तसेच प्रजेनेही बनावे. ॥ ४ ॥