अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घमग्ने॑ शुशु॒ग्ध्या र॒यिम्। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥
apa naḥ śośucad agham agne śuśugdhy ā rayim | apa naḥ śośucad agham ||
अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम्। अग्ने॑। शु॒शु॒ग्धि। आ। र॒यिम्। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.१
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले सत्तानवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सभाध्यक्ष कैसा हो, यह उपदेश किया है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथायं सभाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ।
हे अग्ने भवान् नोऽस्माकमघमपशोशुचत्पुनः पुनर्दूरीकुर्य्यात्। रयिमाशुशुग्धि। नोऽस्माकमघमपशोशुचत् ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सभाध्यक्ष, अग्नी व ईश्वर यांच्या गुणांचे वर्णन असून, या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.