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नक्तो॒षासा॒ वर्ण॑मा॒मेम्या॑ने धा॒पये॑ते॒ शिशु॒मेकं॑ समी॒ची। द्यावा॒क्षामा॑ रु॒क्मो अ॒न्तर्वि भा॑ति दे॒वा अ॒ग्निं धा॑रयन्द्रविणो॒दाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

naktoṣāsā varṇam āmemyāne dhāpayete śiśum ekaṁ samīcī | dyāvākṣāmā rukmo antar vi bhāti devā agniṁ dhārayan draviṇodām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नक्तो॒षासा॑। वर्ण॑म्। आ॒मेम्या॑ने॒ इत्या॒ऽमेम्या॑ने। धा॒पये॑ते॒ इति॑। शिशु॑म्। एक॑म्। स॒मी॒ची॒ इति॑ स॒म्ऽई॒ची। द्यावा॒क्षामा॑। रु॒क्मः। अ॒न्तः। वि। भा॒ति॒। दे॒वाः। अ॒ग्निम्। धा॒र॒य॒न्। द्र॒वि॒णः॒ऽदाम् ॥ १.९६.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:96» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यलोगो ! जिसकी सृष्टि में (वर्णम्) स्वरूप अर्थात् उत्पन्नमात्र को (आमेम्याने) बार-बार विनाश न करते हुए (समीची) सङ्ग को प्राप्त (नक्तोषासा) रात्रि-दिवस वा (द्यावाक्षामा) सूर्य्य और भूमिलोक (शिशुम्) बालक को (धापयेते) दुग्धपान करानेवाले माता-पिता के समान रस आदि का पान करवाते हैं, जिसकी उत्पन्न की बिजुली से युक्त (रुक्मः) आप ही प्रकाशस्वरूप प्राण (अन्तः) सबके बीच (वि, भाति) विशेष प्रकाश को प्राप्त होता है, जिस (द्रविणोदाम्) धनादि पदार्थ देनेहारे के समान (एकम्) अद्वितीयमात्र स्वरूप (अग्निम्) परमेश्वर को (देवाः) आप्त विद्वान् जन (धारयन्) धारणा करते वा कराते हैं, वही सबका पिता है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे दूध पिलानेहारे बालक के समीप में स्थित दो स्त्रियाँ उस बालक को दूध पिलाती हैं, वैसे ही दिन और रात्रि तथा सूर्य और पृथिवी हैं, जिसके नियम से ऐसा होता है, वह सबका उत्पन्न करनेवाला कैसे न हो ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे मनुष्या यस्य सृष्टौ वर्णमामेम्याने समीची नक्तोषासा द्यावाक्षामा शिशुं धापयेते येनोत्पादितविद्युद्युक्तो रुक्मः प्राणः सर्वस्यान्तर्मध्ये विभाति यं द्रविणोदामेकमग्निं देवा धारयन्स एव सर्वस्य पिताऽस्तीति यूयं मन्यध्वम् ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नक्तोषासा) रात्रिन्दिवम् (वर्णम्) स्वरूपम् (आमेम्याने) पुनः पुनरहिंसन्त्यौ (धापयेते) दुग्धं पाययतः (शिशुम्) बालकम् (एकम्) (समीची) प्राप्तसङ्गती (द्यावाक्षामा) प्रकाशभूमी (रुक्मः) स्वप्रकाशस्वरूपः (अन्तः) सर्वस्य मध्ये (वि) विशेषे (भाति) (देवाः०) इति पूर्ववत् ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा धाप्यमानस्य बालकस्य पार्श्वे स्थिते द्वे स्त्रियौ दुग्धं पाययतस्तथैवाहोरात्रौ सूर्य्यपृथिवी च वर्त्तेते यस्य नियमेनैवं भवति स सर्वस्य जनकः कथं न स्यात् ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा दूध पाजविणाऱ्या दोन स्त्रिया बालकाला दूध पाजवितात तसेच दिवस व रात्र आणि सूर्य व पृथ्वी आहेत. ज्याच्या नियमामुळे या गोष्टी घडतात तो सर्वांना उत्पन्न करणारा कसा नसेल? ॥ ५ ॥