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उद्यं॑यमीति सवि॒तेव॑ बा॒हू उ॒भे सिचौ॑ यतते भी॒म ऋ॒ञ्जन्। उच्छु॒क्रमत्क॑मजते सि॒मस्मा॒न्नवा॑ मा॒तृभ्यो॒ वस॑ना जहाति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud yaṁyamīti saviteva bāhū ubhe sicau yatate bhīma ṛñjan | uc chukram atkam ajate simasmān navā mātṛbhyo vasanā jahāti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। यं॒य॒मी॒ति॒। स॒वि॒ताऽइ॑व। बा॒हू इति॑। उ॒भे इति॑। सिचौ॑। य॒त॒ते॒। भी॒मः। ऋ॒ञ्जन्। उत्। शु॒क्रम्। अत्क॑म्। अ॒ज॒ते॒। सि॒मस्मा॑त्। नवा॑। मा॒तृऽभ्यः॒। वस॑ना। ज॒हा॒ति॒ ॥ १.९५.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:95» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह समय कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (भीमः) भयङ्कर (ऋञ्जन्) सबको प्राप्त होता हुआ काल (मातृभ्यः) मान करनेहारे क्षण आदि अपने अवयवों से (सवितेव) जैसे सूर्य्यलोक अपनी आकर्षणशक्ति से भूगोल आदि लोकों का धारण करता है वैसे (उद्यंयमीति) बार-बार नियम रखता है (बाहू) बल और पराक्रम वा (उभे) सूर्य्य और पृथिवी (सिचौ) वा वर्ष के द्वारा सींचनेवाले पवन और अग्नि को (यतते) व्यवहार में लाता है, वह काल (अत्कम्) निरन्तर (शुक्रम्) पराक्रम को (सिमस्मात्) सब जगत् से (उद्) ऊपर की श्रेणी को (अजते) पहुँचाता और (नवा) नवीन (वसना) आच्छादनों को (जहाति) छोड़ता है, यह जानो ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोगों को जिस काल से सूर्य आदि जगत् प्रकट होता है और जो क्षण आदि अङ्गों से सबका आच्छादन करता, सबके नियम का हेतु वा सबकी प्रवृत्ति का अधिकरण है, उसको जान के समय-समय पर काम करने चाहिये ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कालः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे मनुष्या यो भीम ऋञ्जन् कालो मातृभ्यः सवितेवोद्यंयमीति, बाहू उभे सिचौ यतते स कालोऽत्कं शुक्रं सिमस्मादुदजते, नवा वसना जहातीति जानीत ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) उत्कृष्टे (यंयमीति) पुनःपुनरतिशयेन नियमं करोति (सवितेव) यथा सूर्य्य आकर्षणेन भूगोलान् धरति तथा (बाहू) बलवीर्य्ये (उभे) द्यावापृथिव्यौ (सिचौ) वृष्टिद्वारा सेचकौ वाय्वग्नी (यतते) व्यवहारयति (भीमः) बिभेत्यस्मात्सः (ऋञ्जन्) प्राप्नुवन् (उत्) (शुक्रम्) पराक्रमम् (अत्कम्) निरन्तरम् (अजते) क्षिपति। व्यत्ययेनात्रात्मनेपदम्। (सिमस्मात्) सर्वस्माज्जगतः (नवा) नवीनानि (मातृभ्यः) मानविधायकेभ्यः क्षणादिभ्यः (वसना) आच्छादनानि (जहाति) त्यजति ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या युष्माभिर्येन कालेन सूर्य्यादिकं जगज्जायते यो वा क्षणादिना सर्वमाच्छादयति सर्वनियमहेतुः सर्वेषां प्रवृत्त्यधिकरणोऽस्ति तं विज्ञाय यथासमयं कृत्यानि कर्त्तव्यानि ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्या काळापासून सूर्य इत्यादी जग प्रकट होते व जो क्षण इत्यादी अंगांनी सर्वांचे आच्छादन करतो. सर्वांच्या नियमाचा हेतू, सर्वांच्या प्रवृत्तीचे अधिकरण आहे. त्याला जाणून तुम्ही काळानुसार काम करा. ॥ ७ ॥