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दशे॒मं त्वष्टु॑र्जनयन्त॒ गर्भ॒मत॑न्द्रासो युव॒तयो॒ विभृ॑त्रम्। ति॒ग्मानी॑कं॒ स्वय॑शसं॒ जने॑षु वि॒रोच॑मानं॒ परि॑ षीं नयन्ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

daśemaṁ tvaṣṭur janayanta garbham atandrāso yuvatayo vibhṛtram | tigmānīkaṁ svayaśasaṁ janeṣu virocamānam pari ṣīṁ nayanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दश॑। इ॒मम्। त्वष्टुः॑। ज॒न॒य॒न्त॒। गर्भ॑म्। अत॑न्द्रासः। यु॒व॒तयः॑। विऽभृ॑त्रम्। ति॒ग्मऽअ॑नी॑कम्। स्वऽय॑शसम्। जने॑षु। वि॒ऽरोच॑मानम्। परि॑। सी॒म्। न॒य॒न्ति॒ ॥ १.९५.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:95» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब दिन-रात का व्यवहार दिशाओं के मिष से अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम (अतन्द्रासः) जो एक नियम के साथ रहने से निरालसता आदि गुणों से युक्त (युवतयः) जवान स्त्रियों के समान एक-दूसरे के साथ मिलने वा न मिलने से सब कभी अजर-अमर रहनेवाली (दश) दश दिशा (त्वष्टुः) बिजुली वा पवन के (इमम्) इस प्रत्यक्ष अहोरात्र से प्रसिद्ध (गर्भम्) समस्त व्यवहार का कारणरूप (विभृत्रम्) जो कि अनेकों प्रकार की क्रिया को धारण किये हुए (तिग्मानीकम्) जिसमें अत्यन्त तीक्ष्ण सेनाजन विद्यमान जो (जनेषु) गणितविद्या के जाननेवाले मनुष्यों में (विरोचमानम्) अनेक रीति से प्रकाशमान (स्वयशसम्) अनेक गुण, कर्म्म, स्वभाव और प्रशंसायुक्त (सीम्) प्राप्त होने के योग्य उस दिन-रात के व्यवहार को (जनयन्त) उत्पन्न करती और (परि) सब ओर से (नयन्ति) स्वीकार करती हैं, उनको तुम लोग जानो ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जिनके देश-काल का नियम अनुमान में नहीं आता, ऐसी अनन्तरूप पूर्व आदि क्रम से प्रसिद्ध सब व्यवहारों की सिद्धि करानेवाली दश दिशा हैं, उनमें नियमयुक्त व्यवहारों को सिद्ध करें, इनमें किसी को विरुद्ध व्यवहार न करना चाहिये ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाहोरात्रव्यवहारो दिशां मिषेणोपदिश्यते ।

अन्वय:

हे मनुष्या या अतन्द्रासो युवतय इव दश दिशस्त्वष्टुरिमं गर्भं विभृत्रं तिग्मानीकं विरोचमानं स्वयशसं सीं जनयन्त जनयन्ति परिणयन्ति ता यूयं विजानीत ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दश) दिशः (इमम्) प्रत्यक्षमहोरात्रप्रसिद्धम् (त्वष्टुः) विद्युतो वायोर्वा (जनयन्त) जनयन्ति। अत्राडभावः। (गर्भम्) सर्वव्यवहारादिकारणम् (अतन्द्रासः) नियतरूपत्वादनालस्यादियुक्ताः (युवतयः) मिश्रामिश्रत्वकर्मणा सदाऽजराः (विभृत्रम्) विविधक्रियाधारकम् (तिग्मानीकम्) तिग्मानि निशितानि तीक्ष्णान्यनीकानि सैन्यानि यस्मिँस्तम् (स्वयशसम्) स्वकीयगुणकर्मस्वभावकीर्त्तियुक्तम् (जनेषु) गणितविद्यावित्सु मनुष्येषु (विरोचमानम्) विविधप्रकारेण प्रकाशमानम् (परि) सर्वतोभावे (सीम्) प्राप्तव्यमहोरात्रव्यवहारम् (नयन्ति) प्रापयन्ति। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरनियतदेशकाला विभुस्वरूपा पूर्वादिक्रमजन्याः सर्वव्यवहारसाधिका दश दिशः सन्ति तासु नियता व्यवहाराः साधनीया नात्र खलु केनचिद्विरुद्धो व्यवहारोऽनुष्ठेयः ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्यांच्या देशकालाच्या नियमाचे अनुमान काढता येत नाही, अशा विभुस्वरूप पूर्व इत्यादी क्रमाने सर्व व्यवहारांची सिद्धी करविणाऱ्या दहा दिशा आहेत. त्यांच्यात नियमयुक्त व्यवहारांना सिद्ध करावे. त्यात कोणीही विरुद्ध व्यवहार करू नये. ॥ २ ॥