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अग्नी॑षोमा॒ यो अ॒द्य वा॑मि॒दं वच॑: सप॒र्यति॑। तस्मै॑ धत्तं सु॒वीर्यं॒ गवां॒ पोषं॒ स्वश्व्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnīṣomā yo adya vām idaṁ vacaḥ saparyati | tasmai dhattaṁ suvīryaṁ gavām poṣaṁ svaśvyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्नी॑षोमा। यः। अ॒द्य। वा॒म्। इ॒दम्। वचः॑। स॒प॒र्यति॑। तस्मै॑। ध॒त्त॒म्। सु॒ऽवीर्य॑म्। गवा॑म्। पोष॑म्। सु॒ऽअश्व्य॑म् ॥ १.९३.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:93» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्नीषोमा) पढ़ाने और परीक्षा लेनेवाले विद्वानो ! (यः) जो पढ़नेवाला (अद्य) आज (वाम्) तुम्हारे (इदम्) इस (वचः) विद्या के वचन को (सपर्यति) सेवे (तस्मै) उसके लिये (स्वश्व्यम्) जो अच्छे-अच्छे घोड़ों से युक्त (सुवीर्य्यम्) उत्तम-उत्तम बल जिस विद्याभ्यास से हों, उस (गवाम्) इन्द्रिय और गाय आदि पशुओं के (पोषम्) सर्वथा शरीर और आत्मा की पुष्टि करनेहारे सुख को (धत्तम्) दीजिये ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जो ब्रह्मचारी विद्या के लिये पढ़ाने और परीक्षा करनेवालों के प्रति उत्तम प्रीति को करके और उनकी नित्य सेवा करता है, वही बड़ा विद्वान् होकर सब सुखों को पाता है ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे अग्नीषोमावध्यापकसुपरीक्षकौ योऽद्य वामिदं वचः सपर्यति तस्मै स्वश्व्यं सुवीर्य्यं गवां पोषं च धत्तम् ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नीषोमा) अध्यापकसुपरीक्षकौ। अत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (यः) अध्येता (अद्य) (वाम्) युवयोः (इदम्) (वचः) वचनम् (सपर्य्यति) (तस्मै) (धत्तम्) प्रयच्छतम् (सूवीर्यम्) शोभनानि वीर्य्याणि यस्माद्विद्याभ्यासात्तम् (गवाम्) इन्द्रियाणां पशूनां वा (पोषम्) शरीरात्मपुष्टिकारकम् (स्वश्व्यम्) शोभनेष्वश्वेषु साधुम् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - यो ब्रह्मचारी विद्यार्थमध्यापकपरीक्षकौ प्रति सुप्रीतिं कृत्वैनौ नित्यं सेवते स एव महाविद्वान् भूत्वा सर्वाणि सुखानि लभते ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो ब्रह्मचारी विद्येसाठी अध्यापक व परीक्षक यांचे उत्तम प्रेम संपादन करून त्यांची सदैव सेवा करतो तोच मोठा विद्वान बनून सर्व सुख प्राप्त करतो. ॥ २ ॥