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अग्नी॑षोमावि॒मानि॑ नो यु॒वं ह॒व्या जु॑जोषतम्। आ या॑त॒मुप॑ न॒: सचा॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnīṣomāv imāni no yuvaṁ havyā jujoṣatam | ā yātam upa naḥ sacā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्नी॑षोमौ। इ॒मानि॑। नः॒। यु॒वम्। ह॒व्या। जु॒जो॒ष॒त॒म्। आ। या॒त॒म्। उप॑। नः॒। सचा॑ ॥ १.९३.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:93» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (युवम्) जो (अग्नीषोमौ) समस्त मूर्त्तिमान् पदार्थों का संयोग करनेहारे अग्नि और पवन (नः) हम लोगों के (इमानि) इन (हव्या) देने-लेने योग्य पदार्थों को (जुजोषतम्) बार-बार सेवन करते हैं वे (सचा) यज्ञ के विशेष विचार करनेवाले (नः) हम लोगों को (उप, आ, यातम्) अच्छे प्रकार मिलते हैं ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - जब यज्ञ से सुगन्धित आदि द्रव्ययुक्त अग्नि वायु सब पदार्थ के समीप मिलकर उनमें लगते हैं, तब सबकी पुष्टि होती है ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ किं कुरुत इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

युवं यावग्नीषोमौ नोऽस्माकमिमानि हव्या जुजोषतमत्यन्तं सेवेते तौ सचा नोऽस्मानुपायातम् ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नीषोमौ) सर्वमूर्त्तद्रव्यसंयोगिनौ (इमानि) (नः) अस्माकम् (युवम्) यौ (हव्या) दातुमादातुं योग्यानि वस्तूनि (जुजोषतम्) अत्यन्तं सेवेते। अत्र जुषी प्रीतिसेवनयोरिति धातोः शब्विकरणस्य स्थाने श्लुः। बहुलं छन्दसीति गुणश्च। (आ) समन्तात् (यातम्) प्राप्नुतः (उप) (नः) अस्मान् (सचा) यज्ञविज्ञानयुक्तान् ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - यदा यज्ञेन सुगन्धितादिद्रव्ययुक्तावग्निवायू सर्वान् पदार्थानुपागत्य स्पृशतस्तदा सर्वेषां पुष्टिर्जायते ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा यज्ञाने सुगंधित द्रव्ययुक्त अग्नी, वायू सर्व पदार्थांच्या जवळ जातात तेव्हा ते सर्वांना पुष्ट करतात. ॥ ११ ॥