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अग्नी॑षोमाव॒नेन॑ वां॒ यो वां॑ घृ॒तेन॒ दाश॑ति। तस्मै॑ दीदयतं बृ॒हत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnīṣomāv anena vāṁ yo vāṁ ghṛtena dāśati | tasmai dīdayatam bṛhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्नी॑षोमौ। अ॒नेन॑। वा॒म्। यः। वा॒म्। घृ॒तेन॑। दाश॑ति। तस्मै॑। दी॒द॒य॒त॒म्। बृ॒हत् ॥ १.९३.१०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:93» मन्त्र:10 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इसके अनुष्ठान करनेवाले को क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो मनुष्य (वाम्) इनके बीच (अनेन) इस (घृतेन) घी वा जल से आहुतियों को देता है वा (वाम्) इनकी उत्तेजना से उपकारों को ग्रहण करता है, उसके लिये (अग्नीषोमा) बिजुली और पवन (बृहत्) बड़े विज्ञान और सुख को (दीदयतम्) प्रकाशित करते हैं ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य क्रियारूपी यज्ञों का अनुष्ठान करते हैं, वे इस संसार में अत्यन्त सौभाग्य को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतदनुष्ठातुः किं जायत इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

यो वामेतयोर्मध्येऽनेन घृतेनाहुतीर्दाशति वां सकाशादुपकारान् गृह्णाति तस्मा अग्नीषोमौ बृहद्दीदयतम् ॥ १० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नीषोमौ) विद्युत्पवनौ (अनेन) प्रत्यक्षेण (वाम्) युवयोर्मध्ये (यः) एकः (वाम्) एतयोः सकाशात् (घृतेन) आज्येनोदकेन वा (दाशति) आहुतीर्ददाति (तस्मै) (दीदयतम्) प्रकाशयतः (बृहत्) महत् ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः क्रियायज्ञानुष्ठानं कुर्वन्ति तेऽस्मिञ्जगति महत्सौभाग्यं प्राप्नुवन्ति ॥ १० ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे क्रियारूपी यज्ञांचे अनुष्ठान करतात ती या जगात अत्यंत सौभाग्यवान असतात. ॥ १० ॥