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उषो॑ अ॒द्येह गो॑म॒त्यश्वा॑वति विभावरि। रे॒वद॒स्मे व्यु॑च्छ सूनृतावति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uṣo adyeha gomaty aśvāvati vibhāvari | revad asme vy uccha sūnṛtāvati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उषः॑। अ॒द्य। इ॒ह। गो॒ऽम॒ति॒। अश्व॑ऽवति। वि॒भा॒ऽव॒रि॒। रे॒वत्। अ॒स्मे। वि। उ॒च्छ॒। सू॒नृ॒ता॒ऽव॒ति॒ ॥ १.९२.१४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:92» मन्त्र:14 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या करती है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री ! जैसे (गोमति) जिसके सम्बन्ध में गौ होतीं (अश्वावति) घोड़े होते तथा (सूनृतावति) जिसके प्रशंसनीय काम हैं, वह (विभावरि) क्षण-क्षण बढ़ती हुई दीप्तिवाली (उषः) प्रातःसमय की वेला (अस्मे) हम लोगों के लिये (रेवत्) जिसमें प्रशंसित धन हों उस सुख को (वि, उच्छ) प्राप्त कराती है, उससे हम लोग (अद्य) आज (इह) इस जगत् में सुखों को (धामहे) धारण करते हैं ॥ १४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में (धामहे) इस पद की अनुवृत्ति आती है, मनुष्यों को चाहिये कि प्रतिदिन प्रातःकाल सोने से उठकर जबतक फिर न सोवें तबतक अर्थात् दिनभर निरालसता से उत्तम यत्न के साथ विद्या, धन और राज्य तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन सब उत्तम-उत्तम पदार्थों को सिद्ध करें ॥ १४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा किं करोतीत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे स्त्रि यथा गोमत्यश्वावति सूनृतावति विभावर्युषोऽस्मे रेवद्व्युच्छति तथा वयमद्येह सुखानि धामहे ॥ १४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) उषाः (अद्य) अस्मिन्नहनि (इह) अस्मिन्संसारे (गोमति) गावो यस्याः सम्बन्धेन भवन्ति (अश्वावति) अश्वा अस्याः सम्बन्धे सन्ति सा। अत्र मन्त्रे सोमाश्वेन्द्रियविश्वदेव्यस्य मतौ। अ० ६। ३। १३१। इत्यश्वशब्दस्य दीर्घः। अत्रोभयत्र सम्बन्धार्थे मतुप्। (विभावरि) विविधदीप्तियुक्ते (रेवत्) प्रशस्तानि रायो धनानि विद्यन्ते यस्मिन् सुखे तत् (अस्मे) अस्मभ्यम् (वि) विगतार्थे (उच्छ) उच्छति विवासयति (सूनृतावति) सूनृतान्यनृशंस्यानि प्रशस्तानि कर्माण्यस्याः सा ॥ १४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र धामहे इति पदमनुवर्त्तते। मनुष्यैः प्रत्युषःकालमुत्थाय यावच्छयनं न कुर्य्युस्तावन्निरालस्यतया परमप्रयत्नेन विद्याधनराज्यानि धर्मार्थकाममोक्षाश्च साधनीयाः ॥ १४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात (धामहे) या पदाची अनुवृत्ती झालेली आहे. माणसांनी प्रत्येक दिवशी प्रातःकाळी उठून झोपेपर्यंत अर्थात आळस सोडून दिवसभर प्रयत्नपूर्वक विद्या, धन व राज्य तसेच धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हे सर्व उत्तम पदार्थ साध्य करावेत. ॥ १४ ॥