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सु॒भगः॒ स प्र॑यज्यवो॒ मरु॑तो अस्तु॒ मर्त्यः॑। यस्य॒ प्रयां॑सि॒ पर्ष॑थ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

subhagaḥ sa prayajyavo maruto astu martyaḥ | yasya prayāṁsi parṣatha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽभगः॑। सः। प्र॒ऽय॒ज्य॒वः॒। मरु॑तः। अ॒स्तु॒। मर्त्यः॑। यस्य॑। प्रयां॑सि। पर्ष॑थ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:86» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:14» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उनकी रक्षा और शिक्षा पाया हुआ मनुष्य कैसा होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रयज्यवः) अच्छे-अच्छे यज्ञादि कर्म करनेवाले (मरुतः) सभाध्यक्ष आदि विद्वानो ! तुम (यस्य) जिसके लिये (प्रयांसि) अत्यन्त प्रीति करने योग्य मनोहर पदार्थों को (पर्षथ) परसते अर्थात् देते हो (सः) वह (मर्त्यः) मनुष्य (सुभगः) श्रेष्ठ धन और ऐश्वर्य्ययुक्त (अस्तु) हो ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - जिन मनुष्यों के सभाध्यक्ष आदि विद्वान् रक्षा करनेवाले हैं, वे क्योंकर सुख और ऐश्वर्य्य को न पावें? ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तैः पालितः शिक्षितो जनः कीदृशो भवतीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे प्रयज्यवो मरुतो ! यूयं यस्य प्रयांसि पर्षथ स मर्त्यः सुभगोऽस्तु ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुभगः) शोभनो भगो धनमैश्वर्य्यं वा यस्य सः। भग इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (सः) (प्रयज्यवः) प्रकृष्टा यज्यवो येषाम् तत्सम्बुद्धौ (मरुतः) सभाध्यक्षादयः (अस्तु) भवतु (मर्त्यः) मनुष्यः (यस्य) यस्मै। अत्र चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसीति षष्ठीप्रयोगः। (प्रयांसि) प्रीतानि कान्तानि वस्तूनि (पर्षथ) सिञ्चत दत्त ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - येषां जनानां सभाद्यध्यक्षादयो विद्वांसो रक्षकाः सन्ति, ते कथं न सुखैश्वर्य्यं प्राप्नुयुः ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसांचे रक्षण सभाध्यक्ष इत्यादी विद्वान लोक करतात. ते सुख व ऐश्वर्य का प्राप्त करू शकणार नाहीत? ॥ ७ ॥