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क्रत्वा॑ म॒हाँ अ॑नुष्व॒धं भी॒म आ वा॑वृधे॒ शवः॑। श्रि॒य ऋ॒ष्व उ॑पा॒कयो॒र्नि शि॒प्री हरि॑वान्दधे॒ हस्त॑यो॒र्वज्र॑माय॒सम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kratvā mahām̐ anuṣvadham bhīma ā vāvṛdhe śavaḥ | śriya ṛṣva upākayor ni śiprī harivān dadhe hastayor vajram āyasam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्रत्वा॑। म॒हान्। अ॒नु॒ऽस्व॒धम्। भी॒मः। आ। व॒वृ॒धे॒। शवः॑। श्रि॒ये। ऋ॒ष्वः। उ॒पा॒कयोः॑। नि। शि॒प्री। हरि॑ऽवान्। द॒धे॒। हस्त॑योः। वज्र॑म्। आ॒य॒सम् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:81» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सेनापति क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (हरिवान्) बहुत उत्तम अश्वों से युक्त (शिप्री) शत्रुओं को रुलाने (भीमः) और भय देनेवाला (महान्) बड़ा (ऋष्वः) प्राप्तविद्या सेनापति (शवः) बल (क्रत्वा) प्रज्ञा वा कर्म से (अनुष्वधम्) अनुकूल अन्न को (नि, ववृधे) अत्यन्त बढ़ाता है (श्रिये) शोभा और लक्ष्मी के अर्थ (उपाकयोः) समीप में प्राप्त हुई अपनी और शत्रुओं की सेना के समीप (हस्तयोः) हाथों में (आयसम्) लोहे आदि से बनाये हुए (वज्रम्) शस्त्रसमूह को (आदधे) धारण करके शत्रुओं को जीतता है, वही राज्याधिकारी होता है ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जो बुद्धिमान्, बड़े-बड़े उत्तम गुणों से युक्त, शत्रुओं को भयकर्त्ता, सेनाओं का शिक्षक, अत्यन्त युद्ध करनेहारा पुरुष है, उसको सेनापति करके धर्म से राज्यपालन की न्यायव्यवस्था करनी चाहिये ॥ ४ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सेनापतिः किं कुर्यादित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

यो हरिवान् शिप्री भीमो महानृष्वः शवः सेनापतिः क्रत्वाऽनुष्वधं निववृधे श्रिय उपाकयोर्हस्तयोरायसं वज्रमादधे, स एव शत्रून् विजित्य राज्याधिकारी भवति ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (महान्) सर्वोत्कृष्टः (अनुष्वधम्) स्वधामन्नमनुकूलम् (भीमः) बिभेति यस्मात् सः (आ) सर्वतः (वावृधे) वर्धते (शवः) सुखवर्धकं बलम् (श्रिये) शोभायै धनप्राप्तये वा (ऋष्वः) प्राप्तविद्यः (उपाकयोः) समीपस्थयोः सेनयोः (नि) नितराम् (शिप्री) शत्रूणामाक्रोशकः (हरिवान्) प्रशस्ता हरयोऽश्वा विद्यन्ते यस्य सः (दधे) धरामि (हस्तयोः) करयोर्मध्ये (वज्रम्) शस्त्रसमूहम् (आयसम्) अयोमयम् ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यो बुद्धिमान् महोत्तमगुणविशिष्टः शत्रूणां भयङ्करः सेनाशिक्षकोऽतियोद्धा वर्त्तते तं सेनापतिं कृत्वा धर्मेण राज्यं प्रशासनीयम् ॥ ४ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी बुद्धिमान, उत्तम गुणांनी युक्त, शत्रूंना भयभीत करणारा, सेनेचा शिक्षक, युद्ध करण्यात कुशल पुरुष असेल तर त्यालाच सेनापती करून धर्माचे राज्य चालेल अशी न्यायव्यवस्था स्थापन केली पाहिजे. ॥ ४ ॥