इ॒त्था हि सोम॒ इन्मदे॑ ब्र॒ह्मा च॒कार॒ वर्ध॑नम्। शवि॑ष्ठ वज्रि॒न्नोज॑सा पृथि॒व्या निः श॑शा॒ अहि॒मर्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥
itthā hi soma in made brahmā cakāra vardhanam | śaviṣṭha vajrinn ojasā pṛthivyā niḥ śaśā ahim arcann anu svarājyam ||
इ॒त्था। हि। सोमे॑। इत्। मदे॑। ब्र॒ह्मा। च॒कार॑। वर्ध॑नम्। शवि॑ष्ठ। व॒ज्रि॒न् ओज॑सा। पृ॒थि॒व्याः। निः। श॒शाः॒। अहि॑म्। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब ८० वें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में सभापति आदि का वर्णन किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सभाद्यध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
हे शविष्ठ वज्रिन् ! यथा सूर्योऽहिं यथा ब्रह्मोजसा पृथिव्या मदे सोमे स्वराज्यमन्वर्चन्नित्था वर्धनं चकार तथा हि त्वं सर्वानन्यायाचारान्निः शशाः ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सभाध्यक्ष, सूर्य, विद्वान व ईश्वर यांचे वर्णन करण्याने पूर्व सूक्ताबरोबर या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे. ॥