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नि येन॑ मुष्टिह॒त्यया॒ नि वृ॒त्रा रु॒णधा॑महै। त्वोता॑सो॒ न्यर्व॑ता॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ni yena muṣṭihatyayā ni vṛtrā ruṇadhāmahai | tvotāso ny arvatā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि। येन॑। मु॒ष्टि॒ऽह॒त्यया॑। नि। वृ॒त्रा। रु॒णधा॑महै। त्वाऽऊ॑तासः। नि। अर्व॑ता॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:8» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे धन से परमसुख होता है, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (त्वोतासः) आप के सकाश से रक्षा को प्राप्त हुए हम लोग (येन) जिस पूर्वोक्त धन से (मुष्टिहत्यया) बाहुयुद्ध और (अर्वता) अश्व आदि सेना की सामग्री से (निवृत्रा) निश्चित शत्रुओं को (निरुणधामहै) रोकें अर्थात् उनको निर्बल कर सकें, ऐसे उत्तम धन का दान हम लोगों के लिये कृपा से दीजिये॥२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर के सेवक मनुष्यों को उचित है कि अपने शरीर और बुद्धिबल को बहुत बढ़ावें, जिससे श्रेष्ठों का पालन और दुष्टों का अपमान सदा होता रहे, और जिससे शत्रुजन उनके मुष्टिप्रहार को न सह सकें, इधर-उधर छिपते-भागते फिरें॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशेन धनेनेत्युपदिश्यते।

अन्वय:

हे जगदीश्वर ! त्वं त्वोतासस्त्वया रक्षिता सन्तो वयं येन धनेन मुष्टिहत्ययाऽर्वता निवृत्रा निश्चितान् शत्रून् निरुणधामहै, तेषां सर्वदा निरोधं करवामहै, तदस्मभ्यं देहि॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नि) नितरां क्रियायोगे (येन) पूर्वोक्तेन धनेन (मुष्टिहत्यया) हननं हत्या मुष्टिभिर्हत्या मुष्टिहत्या तया (नि) निश्चयार्थे (वृत्रा) मेघवत्सुखावरकान् शत्रून्। अत्र सुपां सुलुगिति शसः स्थाने आजादेशः। (रुणधामहै) निरुन्ध्याम (त्वोतासः) त्वया जगदीश्वरेण रक्षिताः सन्तः (नि) निश्चयार्थे (अर्वता) अश्वादिभिः सेनाङ्गैः। अर्वेत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४)॥२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वरेष्टैर्मनुष्यैः शरीरात्मबलैः सर्वसामर्थ्येन श्रेष्ठानां पालनं दुष्टानां निग्रहः सर्वदा कार्य्यः, यतो मुष्टिप्रहारमसहमानाः शत्रवो विलीयेरन्॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वराचे सेवक असणाऱ्या माणसांनी आपले शरीर व बुद्धिबल खूप वाढवावे, ज्यामुळे श्रेष्ठांचे पालन व दुष्टांचा सदैव अनादर व्हावा व शत्रूगण त्यांचा मुष्ठिप्रहार सहन करू शकणार नाहीत व इकडे तिकडे लपून छपून पळत सुटतील. ॥ २ ॥