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अवा॑ नो अग्न ऊ॒तिभि॑र्गाय॒त्रस्य॒ प्रभ॑र्मणि। विश्वा॑सु धी॒षु व॑न्द्य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avā no agna ūtibhir gāyatrasya prabharmaṇi | viśvāsu dhīṣu vandya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑। नः॒। अ॒ग्ने॒। ऊ॒तिऽभिः॑। गा॒य॒त्रस्य॑। प्रऽभ॑र्मणि। विश्वा॑सु। धी॒षु। व॒न्द्य॒ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:79» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वन्द्य) अभिवादन और प्रशंसा करने योग्य (अग्ने) विज्ञानस्वरूप सभाध्यक्ष ! आप (ऊतीभिः) रक्षण आदि से (गायत्रस्य) गायत्री के प्रगाथ वा आनन्दकारक व्यवहार का (प्रभर्मणि) अच्छी प्रकार राज्यादि का धारण हो जिसमें उस तथा (विश्वासु) सब (प्रज्ञासु) बुद्धियों में (नः) हम लोगों की (अव) रक्षा कीजिये ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि जो सभाध्यक्ष विद्वान् हमारी बुद्धि को शुद्ध करता है, उसका सत्कार करें ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स सभाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे वन्द्याग्ने सभाध्यक्ष ! त्वमूतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि विश्वासु धीषु नोऽस्मानव ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अव) रक्ष (नः) अस्मान् (अग्ने) विज्ञानस्वरूप (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः (गायत्रस्य) गायत्रीप्रगाथस्य छन्दस आनन्दकरस्य व्यवहारस्य वा (प्रभर्मणि) प्रकर्षेण बिभ्रति राज्यादीन् यस्मिंस्तस्मिन् (विश्वासु) सर्वासु (धीषु) प्रज्ञासु (वन्द्य) अभिवदितुं प्रशंसितुं योग्य ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्येन प्रज्ञा प्रज्ञाप्यते स सत्कर्त्तव्यः ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सभाध्यक्ष विद्वान आपल्या बुद्धीला शुद्ध करतो त्याचाच सर्व माणसांनी सत्कार करावा. ॥ ७ ॥