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इन्द्रो॑ दी॒र्घाय॒ चक्ष॑स॒ आ सूर्यं॑ रोहयद्दि॒वि। वि गोभि॒रद्रि॑मैरयत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indro dīrghāya cakṣasa ā sūryaṁ rohayad divi | vi gobhir adrim airayat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रः॑। दी॒र्घाय॑। चक्ष॑से॑। आ। सूर्य॑म्। रो॒ह॒य॒त्। दि॒वि। वि। गोभिः॑। अद्रि॑म्। ऐ॒र॒य॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:7» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इसके अनन्तर किसने किसलिये सूर्य्यलोक बनाया है, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) जो सब संसार का बनानेवाला परमेश्वर है, उसने (दीर्घाय) निरन्तर अच्छी प्रकार (चक्षसे) दर्शन के लिये (दिवि) सब पदार्थों के प्रकाश होने के निमित्त जिस (सूर्य्यम्) प्रसिद्ध सूर्य्यलोक को (आरोहयत्) लोकों के बीच में स्थापित किया है, वह (गोभिः) अपनी किरणों के द्वारा (अद्रिम्) मेघ को (व्यैरयत्) अनेक प्रकार से वर्षा होने के लिये ऊपर चढ़ाकर वारंवार वर्षाता है॥३॥
भावार्थभाषाः - रचने की इच्छा करनेवाले ईश्वर ने सब लोकों में दर्शन, धारण और आकर्षण आदि प्रयोजनों के लिये प्रकाशरूप सूर्य्यलोक को सब लोकों के बीच में स्थापित किया है, इसी प्रकार यह हर एक ब्रह्माण्ड का नियम है कि वह क्षण-क्षण में जल को ऊपर खींच करके पवन के द्वारा ऊपर स्थापन करके वार-वार संसार में वर्षाता है, इसी से यह वर्षा का कारण है॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ केन किमर्थः सूर्य्यलोको रचित इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

इन्द्रः सृष्टिकर्त्ता जगदीश्वरो दीर्घाय चक्षसे यं सूर्य्यलोकं दिव्यारोहयत् सोऽयं गोभिरद्रिं व्यैरयत् वीरयति॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) सर्वजगत्स्रष्टेश्वरः (दीर्घाय) महते निरन्तराय (चक्षसे) दर्शनाय (आ) क्रियार्थे (सूर्य्यम्) प्रत्यक्षं सूर्य्यलोकम् (रोहयत्) उपरि स्थापितवान् (दिवि) प्रकाशनिमित्ते (वि) विविधार्थे (गोभिः) रश्मिभिः। गाव इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (अद्रिम्) मेघम्। अद्रिरिति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१०) (ऐरयत्) वीरयत् वीरयत्यूर्ध्वमधो गमयति। अत्र लडर्थे लुङ्॥३॥
भावार्थभाषाः - सृष्टिमिच्छतेश्वरेण सर्वेषां लोकानां मध्ये दर्शनधारणाकर्षणप्रकाशप्रयोजनाय प्रकाशरूपः सूर्य्यलोकः स्थापितः, एवमेवायं प्रतिब्रह्माण्डं नियमो वेदितव्यः। स प्रतिक्षणं जलमूर्ध्वमाकृष्य वायुद्वारोपरि स्थापयित्वा पुनः पुनरधः प्रापयतीदमेव वृष्टेर्निमित्तमिति॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सृजनाची इच्छा करणाऱ्या ईश्वराने सर्व लोकांमध्ये दर्शन, धारण व आकर्षण इत्यादी प्रयोजनांसाठी प्रकाशरूपी सूर्याला सर्व गोलांच्या मध्ये स्थापन केलेले आहे. त्याचप्रकारे प्रत्येक ब्रह्मांडाचा नियम आहे की सूर्य क्षणोक्षणी जल वर खेचतो व वायूद्वारे वर स्थापन करून वारंवार वृष्टी करवितो. त्यामुळे तो पर्जन्याचे कारण आहे. ॥ ३ ॥