इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑। इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत॥
indram id gāthino bṛhad indram arkebhir arkiṇaḥ | indraṁ vāṇīr anūṣata ||
इन्द्र॑म्। इत्। गा॒थिनः॑। बृ॒हत्। इन्द्र॑म्। अ॒र्केभिः॑। अ॒र्किणः॑। इन्द्र॑म्। वाणीः॑। अ॒नू॒ष॒त॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सातवें सूक्त का आरम्भ है। इस में प्रथम मन्त्र करके इन्द्र शब्द से तीन अर्थों का प्रकाश किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्रशब्देनार्थत्रयमुपदिश्यते।
ये गाथिनोऽर्किणो विद्वांसस्ते अर्केभिर्बृहत् महान्तमिन्द्रं परमेश्वरमिन्द्रं सूर्य्यमिन्द्रं वायुं वाणीश्चेदेवानूषत यथावत्स्तुवन्तु॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सातव्या सूक्तात ईश्वराने आपली निर्मिती सिद्ध करण्यासाठी अंतरिक्षात सूर्य व वायू स्थापन केलेले आहेत व तोच एक सर्वशक्तिमान, सर्व दोषांनी रहित व सर्व माणसांमध्ये पूज्य आहे. या व्याख्येने या सातव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर सहाव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे.