शु॒क्रः शु॑शु॒क्वाँ उ॒षो न जा॒रः प॒प्रा स॑मी॒ची दि॒वो न ज्योतिः॑ ॥
śukraḥ śuśukvām̐ uṣo na jāraḥ paprā samīcī divo na jyotiḥ ||
शु॒क्रः। शु॒शु॒क्वान्। उ॒षः। न। जा॒रः। प॒प्रा। स॒मी॒ची इति॑ स॒म्ऽई॒ची। दि॒वः। न। ज्योतिः॑ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब उनहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ॥
यो मनुष्य उषो जारो नेव शुक्रः शुशुक्वान् पप्रा भुवो दिवः समीची ज्योतिर्न परि प्रज्ञातः क्रत्वा सह वर्त्तमानो देवानां पुत्रः सन् पिता बभूथ भवति, स एव सर्वैस्सेव्यः ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान, विद्युत व ईश्वराच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥