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ई॒शा॒न॒कृतो॒ धुन॑यो रि॒शाद॑सो॒ वाता॑न्वि॒द्युत॒स्तवि॑षीभिरक्रत। दु॒हन्त्यूध॑र्दि॒व्यानि॒ धूत॑यो॒ भूमिं॑ पिन्वन्ति॒ पय॑सा॒ परि॑ज्रयः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īśānakṛto dhunayo riśādaso vātān vidyutas taviṣībhir akrata | duhanty ūdhar divyāni dhūtayo bhūmim pinvanti payasā parijrayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒शा॒न॒ऽकृतः॑। धुन॑यः। रि॒शाद॑सः। वाता॑न्। वि॒ऽद्युतः॑। तवि॑षीभिः। अ॒क्र॒त॒। दु॒हन्ति॑। ऊधः॑। दि॒व्यानि॑। धूत॑यः। भूमि॑म्। पि॒न्व॒न्ति॒। पय॑सा। परि॑ऽज्रयः ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:64» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उक्त वायु कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो ये (ईशानकृतः) जीवों के ऐश्वर्य्ययुक्त करने (धुनयः) धूलि के वर्षाने, वृक्ष आदि के कम्पाने (रिशादसः) जीवों को दुःख देनेवाले रोगों के नाश करने (धूतयः) सब पदार्थों को कम्पाने और (परिज्रयः) सब ओर से पदार्थों को जीर्ण करनेवाले वायु (तविषीभिः) अपने बलों से (विद्युतः) बिजुली आदि को (अक्रत) उत्पन्न करते हैं तथा जो (पयसा) जल वा रस से (ऊधः) उषा को (दुहन्ति) पूर्ण करते हैं, जो (भूमिम्) पृथिवी (दिव्यानि) शुद्ध जल आदि वस्तु तथा उत्तम कार्य्यों का (पिन्वन्ति) सेवन या सेचन करते हैं (वातान्) उन पवनों को जानो ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोगों के लिये परमेश्वर वायु के गुणों का उपदेश करता है कि कहे वा न कहे गुणवाले वायु बिजुली को उत्पन्न करके वर्षा द्वारा भूमि पर ओषधि आदि के सेचन से सब प्राणियों को सुख देनेवाले होते हैं, ऐसा तुम सब लोग जानो ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यूयं य एत ईशानकृतो धुनयो रिशादसो धूतयः परिज्रयस्तविषीभिर्विद्युतोऽक्रत ये पयसोऽधर्दुहन्ति भूमिं पिन्वन्ति सेवन्ते तान् वातान् विजानीत ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईशानकृतः) य ईशानानैश्वर्य्ययुक्तान् कुर्वन्ति ते (धुनयः) रजो वृक्षादीन् कम्पयितारः (रिशादसः) ये रिशान् हिंसकान् रोगानदन्ति ते (वातान्) पवनान् (विद्युतः) स्तनयित्नून् (तविषीभिः) बलैः (अक्रत) कुर्वन्ति (दुहन्ति) पिप्रति (ऊधः) उषसम्। ऊधरित्युषर्नामसु पठितम्। (निघं०१.८) (दिव्यानि) शुद्धानि जलादीनि वस्तूनि कर्माणि वा (धूतयः) ये धून्वन्ति (भूमिम्) पृथिवीम् (पिन्वन्ति) सेवन्ते सिञ्चन्ति वा (पयसा) जलेन रसेन वा (परिज्रयः) ये परितः सर्वतो जीर्णयन्ति ते ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! युष्मभ्यमीश्वरो वायुगुणानुपदिशति। उक्तानुक्तगुणा वायवो विद्युदुत्पादनेन वृष्ट्या भूम्यौषधादिसेचनेन सर्वान् प्राणिनः सुखयन्तीति विजानीत ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! परमेश्वर तुमच्यासाठी वायूंच्या गुणांचा उपदेश करतो की कथित किंवा अकथित गुणयुक्त वायू विद्युत उत्पन्न करून वृष्टीद्वारे भूमीवर औषधी इत्यादींना सिंचित करून सर्व प्राण्यांना सुख देणारे असतात. हे तुम्ही जाणा. ॥ ५ ॥