प्र म॑न्महे शवसा॒नाय॑ शू॒षमा॑ङ्गू॒षं गिर्व॑णसे अङ्गिर॒स्वत्। सु॒वृ॒क्तिभिः॑ स्तुव॒त ऋ॑ग्मि॒यायार्चा॑मा॒र्कं नरे॒ विश्रु॑ताय ॥
pra manmahe śavasānāya śūṣam āṅgūṣaṁ girvaṇase aṅgirasvat | suvṛktibhiḥ stuvata ṛgmiyāyārcāmārkaṁ nare viśrutāya ||
प्र। म॒न्म॒हे॒। श॒व॒सा॒नाय॑। शू॒षम्। आ॒ङ्गू॒षम्। गिर्व॑णसे। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। सु॒वृ॒क्तिऽभिः॑। स्तु॒व॒ते। ऋ॒ग्मि॒याय॑। अर्चा॑म अ॒र्कम्। नरे॑। विऽश्रु॑ताय ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पाँचवे अध्याय का आरम्भ किया जाता है, इसके प्रथम सूक्त के प्रथम मन्त्र में ईश्वर और सभाध्यक्ष के गुणों का वर्णन किया है ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेश्वरसभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते ॥
हे विद्वांसो ! यथा वयं सुवृक्तिभिः शवसानाय गिर्वणस ऋग्मियाय नरे विश्रुताय स्तुवते सभाद्यध्यक्षायाऽङ्गिरस्वच्छूषमर्कमाङ्गूषमर्चाम प्रमन्महे च तथा यूयमप्याचरत ॥ १ ॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात ईश्वर, सभाध्यक्ष, दिवस, रात्र, विद्वान, सूर्य व वायूच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे पूर्वसूक्तार्थाची या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥