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प्र नू म॑हि॒त्वं वृ॑ष॒भस्य॑ वोचं॒ यं पू॒रवो॑ वृत्र॒हणं॒ सच॑न्ते। वै॒श्वा॒न॒रो दस्यु॑म॒ग्निर्ज॑घ॒न्वाँ अधू॑नो॒त्काष्ठा॒ अव॒ शम्ब॑रं भेत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra nū mahitvaṁ vṛṣabhasya vocaṁ yam pūravo vṛtrahaṇaṁ sacante | vaiśvānaro dasyum agnir jaghanvām̐ adhūnot kāṣṭhā ava śambaram bhet ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। नु। म॒हि॒ऽत्वम्। वृ॒ष॒भस्य॑। वो॒च॒म्। यम्। पू॒रवः॑। वृ॒त्र॒ऽहन॑म्। सच॑न्ते। वै॒श्वा॒न॒रः। दस्यु॑म्। अ॒ग्निः। ज॒घ॒न्वान्। अधू॑नोत्। काष्ठाः॑। अव॑। शम्ब॑रम्। भे॒त् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:59» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) जिस परमेश्वर को (पूरवः) विद्वान् लोग अपने आत्मा के साथ (सचन्ते) युक्त करते हैं, जैसे (अग्निः) सर्वत्र व्यापक विद्युत् (वृत्रहणम्) मेघ के नाशकर्त्ता सूर्य को दिखलाती है, जैसे (वैश्वानरः) सम्पूर्ण प्रजा को नियम में रखनेवाला सूर्य्य (दस्युम्) डाकू के तुल्य (शम्बरम्) मेघ को (जघन्वान्) हनन (अधूनोत्) कँपाता (अवभेत्) विदीर्ण करता है, जिस के बीच में (काष्ठाः) दिशा भी व्याप्य है, उस (वृषभस्य) सब से उत्तम सूर्य के (महित्वम्) महिमा को मैं (नु) शीघ्र (प्रवोचम्) प्रकाशित करूँ, वैसे सब विद्वान् लोग किया करें ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिस की महिमा को सब संसार प्रकाशित करता है, वही अनन्त शक्तिमान् परमेश्वर सबको उपासना के योग्य है ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

यं परमेश्वरं पूरवः सचन्तेऽग्निर्वृत्रहणं सवितारमिव सर्वान् पदार्थान् दर्शयति यथा वैश्वानरो दस्युं शम्बरं जघन्वानधूनोदवभेत् यस्य मध्ये काष्ठाः सन्ति, तस्य वृषभस्य महित्वमहं नु प्रवोचं तथा सर्वे विद्वांसः कुर्युः ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) प्रकृष्टार्थे (नु) शीघ्रम् (महित्वम्) महत्त्वम् (वृषभस्य) सर्वोत्कृष्टस्य (वोचम्) कथयेयम् (यम्) वक्ष्यमाणम् (पूरवः) मनुष्याः। पूरव इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) (वृत्रहणम्) यो वृत्रं मेघं शत्रुं वा हन्ति तम् (सचन्ते) समवयन्ति (वैश्वानरः) सर्वनियन्ता (दस्युम्) दुष्टस्वभावयुक्तम् (अग्निः) स्वयंप्रकाशः (जघन्वान्) हतवान् (अधूनोत्) कम्पयति (काष्ठाः) दिशस्तत्रस्थाः प्रजाः (अव) विनिग्रहे (शम्बरम्) मेघम्। शम्बरमिति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१०) (भेत्) भिन्द्यात् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्यायं सर्वः संसारो महिमास्ति स एवानन्तशक्तिमान् परमेश्वरः सर्वैरुपास्यो मन्तव्यः ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याच्या महिमेचे सर्व जग वर्णन करते तोच अनंत शक्तिमान परमेश्वर सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ६ ॥