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अदृ॑श्रमस्य के॒तवो॒ वि र॒श्मयो॒ जनाँ॒ अनु॑ । भ्राज॑न्तो अ॒ग्नयो॑ यथा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adṛśram asya ketavo vi raśmayo janām̐ anu | bhrājanto agnayo yathā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अदृ॑श्रम् । अ॒स्य॒ । के॒तवः॑ । वि । र॒श्मयः॑ । जना॑न् । अनु॑ । भ्राज॑न्तः । अ॒ग्नयः॑ । य॒था॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:50» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (अस्य) इस सविता के (भ्राजन्तः) प्रकाशमान (अग्नयः) प्रज्वलित (केतवः) जनानेवाली (रश्मयः) किरणें (जनान) मनुष्यादि प्राणियों को (अनु) अनुकूलता से प्रकाश करती हैं वैसे मैं अपनी विवाहित स्त्री और अपने पति ही को समागम के योग्य देखूं अन्य को नहीं ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालंकार है। जैसे प्रज्वलित हुए अग्नि और सूर्य्यादिक बाहर सब में प्रकाशमान हैं वैसे ही अन्तरात्मा में ईश्वर का प्रकाश वर्त्तमान है इसके जानने के लिये सब मनुष्यों को प्रयत्न करना योग्य है उस परमात्मा की आज्ञा से परस्त्री के साथ पुरुष और परपुरुष के संग स्त्री व्यभिचार को सब प्रकार छोड़ के पाणिगृहीत अपनी-२ स्त्री और अपने-२ पुरुष के साथ ऋतुगामी ही होवें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अदृश्रम्) प्रेक्षेयम्। अत्र लिङर्थे लङ् शपो लुक् रुडागमश्च। (अस्य) सूर्य्यस्य (केतवः) ज्ञापकाः (वि) विशेषार्थे (रश्मयः) किरणाः (जनान्) मनुष्यादीन्प्राणिनः (अनु) पश्चात् (भ्राजन्तः) प्रकाशमानाः (अग्नयः) प्रज्वलिता वह्नयः (यथा) येन प्रकारेण ॥३॥

अन्वय:

पुनस्ते कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - यथाऽस्य सूर्य्यस्य भ्राजन्तोऽग्नयः केतवो रश्मयो जनाननुभ्राजन्तः सन्ति तथाहं स्वस्त्रियं स्वपुरुषञ्चैव गम्यत्वेन व्यदृश्रं नान्यथेति यावत् ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालंकारः। यथा प्रदीप्ता अग्नयः सूर्य्यादयो वहिः सर्वेषु प्रकाशन्ते तथैवांतरात्मनीश्वरस्य प्रकाशो वर्त्तते। एतद्विज्ञानाय सर्वेषां मनुष्याणां प्रयत्नः कर्त्तुं योग्योस्ति तदाज्ञया परस्त्रीपुरुषैः सह व्यभिचारं सर्वथा विहाय विवाहिताः स्व स्व स्त्रीपुरुषा ऋतुगामिन एव स्युः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा प्रज्वलित झालेला अग्नी व सूर्य इत्यादी बाहेर सर्वात प्रकाशमान असतात. तसेच अंतरात्म्यात ईश्वराचा प्रकाश वर्तमान आहे हे जाणण्यासाठी सर्व माणसांनी प्रयत्न करावेत. त्या परमेश्वराच्या आज्ञेने परस्त्रीबरोबर पुरुष व परपुरुषाबरोबर स्त्रीने व्यभिचार सोडून पाणिग्रहीत आपापल्या स्त्रीबरोबर व आपापल्या पुरुषाबरोबर ऋतुगामी व्हावे. ॥ ३ ॥