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अप॒ त्ये ता॒यवो॑ यथा॒ नक्ष॑त्रा यन्त्य॒क्तुभिः॑ । सूरा॑य वि॒श्वच॑क्षसे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apa tye tāyavo yathā nakṣatrā yanty aktubhiḥ | sūrāya viśvacakṣase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑ । त्ये । ता॒यवः॑ । य॒था॒ । नक्ष॑त्रा । य॒न्ति॒ । अ॒क्तुभिः॑ । सूरा॑य । वि॒श्वच॑क्षसे॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:50» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन किसके लिये क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री पुरुषो ! तुम (यथा) जैसे (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (नक्षत्रा) नक्षत्र आदि क्षय रहित लोक और (तायवः) वायु (विश्वचक्षसे) विश्व के दिखानेवाले (सूराय) सूर्य्य लोक के अर्थ (अपयन्ति) संयुक्त वियुक्त होते हैं वैसे ही विवाहित स्त्रियों के साथ संयुक्त वियुक्त हुआ करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालंकार है। जैसे रात्रि में नक्षत्र लोक चन्द्रमा के साथ और प्राण शरीर के साथ वर्त्तते हैं वैसे विवाह करके स्त्री और पुरुष आपस में वर्त्ता करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(अप) पृथग्भावे (त्ये) अमी (तायवः) सूर्य्यपालका वायवः (यथा) येत प्रकारेण (नक्षत्रा) नक्षत्राणि क्षयरहिता लोकाः (यन्ति) (अक्तुभिः) रात्रिभिः (सूराय) सूर्य्यलोकाय (विश्वचक्षसे) विश्वस्य चक्षुर्दर्शनं यस्मात्तस्मै ॥२॥

अन्वय:

पुनः के कस्मै किं कुर्युरित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री पुरुषा ! यूयं यथाऽक्तुभिः सह वर्त्तमानानि नक्षत्रा नक्षत्राणि लोकास्त्ये तायवो वायवश्च विश्वचक्षसे सूरायापयन्ति तथा विवाहिताभिः स्त्रीभिः सह संयोगवियोगान्कुरुत ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालंकारः। यथा रात्रौ नक्षत्राणि चन्द्रेण प्राणश्च शरीरेण सह वर्त्तन्ते तथा विवाहितस्त्रीपुरुषौ वर्त्तेयाताम् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे रात्री नक्षत्रलोक चंद्राबरोबर व प्राण शरीराबरोबर असतात तसे विवाह करून स्त्री-पुरुषांनी आपापसात वागावे. ॥ २ ॥