आ त्वेता॒ निषी॑द॒तेन्द्र॑म॒भि प्र गा॑यत। सखा॑यः॒ स्तोम॑वाहसः॥
ā tv etā ni ṣīdatendram abhi pra gāyata | sakhāyaḥ stomavāhasaḥ ||
आ। तु। आ। इ॒त॒। नि। सी॒द॒त॒। इन्द्र॑म्। अ॒भि। प्र। गा॒य॒त॒। सखा॑यः॒। स्तोम॑ऽवाहसः॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पाँचवें सूक्त के प्रथम मन्त्र में इन्द्र शब्द से परमेश्वर और स्पर्शगुणवाले वायु का प्रकाश किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्रशब्देनेश्वरभौतिकावर्थावुपदिश्येते।
हे स्तोमवाहसः सखायो विद्वांसः ! सर्वे यूयं मिलित्वा परस्परं प्रीत्या मोक्षशिल्पविद्यासम्पादनोद्योग आनिषीदत, तदर्थमिन्द्रं परमेश्वरं वायुं चाभिप्रगायत। एवं पुनः सर्वाणि सुखान्येत॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या पाचव्या सूक्तात विद्येद्वारे माणसांनी पुरुषार्थ कसा केला पाहिजे व सर्वांवर उपकार केला पाहिजे हा विषय प्रतिपादित करून चौथ्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर याची सांगड घातलेली आहे, हे जाणावे.