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उषो॑ भ॒द्रेभि॒रा ग॑हि दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादधि॑ । वह॑न्त्वरु॒णप्स॑व॒ उप॑ त्वा सो॒मिनो॑ गृ॒हम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uṣo bhadrebhir ā gahi divaś cid rocanād adhi | vahantv aruṇapsava upa tvā somino gṛham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उषः॑ । भ॒द्रेभिः॑ । आ । ग॒हि॒ । दि॒वः । चि॒त् । रो॒च॒नात् । अधि॑ । वह॑न्तु । अ॒रु॒णप्स॑वः । उप॑ । त्वा॒ । सो॒मिनः॑ । गृ॒हम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:49» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ४९ सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मंत्र में उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्म का उपदेश किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे शुभगुणों से प्रकाशमान ! जैसे (उषाः) कल्याणनिमित्त (रोचनात्) अच्छे प्रकार प्रकाशमान से (अधि) ऊपर (भद्रेभिः) कल्याणकारक गुणों से अच्छे प्रकार आती है वैसे ही तू (आगहि) प्राप्त हो और जैसे यह (दिवः) प्रकाश के समीप प्राप्त होती है वैसे ही (त्वा) तुझ को (अरुणप्सवः) रक्त गुणविशिष्ट छेदन करके भोक्ता (सोमिनः) उत्तम पदार्थ वाले विद्वान् के (गृहम्) निवासस्थान को (उपवहन्तु) समीप प्राप्त करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जिस उषा की भूमि संयुक्त सूर्य के प्रकाश से उत्पत्ति है वह दिन रूप परिणाम को प्राप्त होकर पदार्थों को प्रकाशित करती हुई सबको आह्लादित करती है वैसे ही ब्रह्मचर्य विद्या योग से युक्त स्त्री श्रेष्ठ हो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(उषः) उषर्वत्कल्याणनिमित्ते (भद्रेभिः) कल्याणकारकैर्गुणैः (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नुहि (दिवः) प्रकाशान् (चित्) अपि (रोचनात्) देदीप्यमानात् (अधि) उपरि (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु (अरुणप्सवः) अरुणा रक्तगुणविशिष्टाश्च प्सवो भक्षणानि येषान्ते वृद्धा जाताः (समीपे) (त्वा) त्वाम् (सोमिनः) प्रशस्ताः सोमाः पदार्थास्सन्ति यस्य तस्य (गृहम्) निवासस्थानम् ॥१॥

अन्वय:

तत्रादिमे मन्त्रे उषर्दृष्टान्तेन स्त्री कृत्यमुपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे उषः शुभगुणैः प्रकाशमाने ! यथोषा रोचनादधि भद्रेभिरागच्छति तथा त्वमागहि येथेयं दिव उषा वहति तथा त्वारुणप्सवः सोमिनो गृहमुपवहन्तु सामीप्यं प्रापयन्तु ॥१॥
भावार्थभाषाः - यस्योषसो भूमिसंयुक्तसूर्य्यप्रकाशादुत्पत्तिरस्ति सा यथा दिनरूपेण परिणता पदार्थान्प्रकाशयन्ती सर्वानाह्लादयति तथा ब्रह्मचर्यविद्यासंयोगा स्त्री वरा स्यात् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

यात उषेचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - ज्या उषेची स्थिती सूर्याच्या प्रकाशामुळे उत्पन्न होते ती दिवसरूपी परिणामाला प्राप्त होऊन पदार्थांना प्रकाशित करून सर्वांना आल्हादित करते. तसेच ब्रह्मचर्य, विद्या योगाने युक्त स्त्री श्रेष्ठ असावी. ॥ १ ॥